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बुधवार, 26 अगस्त 2015

गतिविधियाँ

अविराम  ब्लॉग संकलन :  वर्ष  : 4,   अंक  : 07-12,  मार्च-अगस्त  2015  

{आवश्यक नोट-  कृपया संमाचार/गतिविधियों की रिपोर्ट कृति देव 010 या यूनीकोड फोन्ट में टाइप करके वर्ड या पेजमेकर फाइल में या फिर मेल बाक्स में पेस्ट करके ही भेजें; स्केन करके नहीं। केवल फोटो ही स्केन करके भेजें। स्केन रूप में टेक्स्ट सामग्री/समाचार/ रिपोर्ट को स्वीकार करना संभव नहीं है। ऐसी सामग्री को हमारे स्तर पर टाइप करने की व्यवस्था संभव नहीं है। फोटो भेजने से पूर्व उन्हें इस तरह संपादित कर लें कि उनका लोड लगभग 02 एम.बी. का रहे।}  


जगद्गुरु रामानन्दाचार्य जी पर रचा डॉ. अरुण जी ने महाकाव्य


हाल ही में सुप्रसिद्ध साहित्यकार एवं केन्द्रीय साहित्य अकादमी के पूर्व सदस्य डॉ. योगेन्द्र नाथ शर्मा ‘अरुण’ जी ने जगद्गुरु रामानन्दाचार्य जी पर केन्द्रित महाकाव्य ‘युग सृष्टा रामानन्द’ का सृजन पूर्ण किया है। महाकाव्य को मंगलाचरण के बाद दस सर्गों में विभक्त किया गया है। जगद्गुरु रामानन्दाचार्य के व्यक्तित्व के साथ समाज को उनके प्रदेय का व्याख्यान इस महाकाव्य में विस्तार से है। समाज सुधार और हर तरह के भेदभाव के खिलाफ उनके आचरण और कर्म-साधना को समझने में यह महाकाव्य
निसन्देह महत्वपूर्ण सिद्ध होगा। कबीरदास और रैदास जैसे महान शिष्यों के महान गुरु रामानन्दाचार्य जी पर केन्द्रित संभवतः यह पहला महाकाव्य होगा। आशा है यह महाकाव्य शीघ्र ही प्रकाशित होकर सामाजिक भेदभाव और बिडंबनाओं के खिलाफ चलने वाले प्रयासों को सम्बल प्रदान करेगा। (समाचार प्रस्तुति : अविराम समाचार डेस्क)







‘भीतर घाम बाहर छांव’ का लोकार्पण


वरिष्ठ कवि-व्यंग्यकार डॉ.सुरेश अवस्थी की रचनात्मकता पर केन्द्रित पुस्तक ‘भीतर घाम बाहर छांव’ का लोकार्पण विगत 7 जून को कानपुर में साहित्यिक संस्था निमित्त व वी.पी.पब्लिशर्स के तत्वावधान में प.बंगाल के राज्यपाल महामहिम केसरीनाथ त्रिपाठी एवं छत्रपति शाहूजी महाराज वि.वि. के कुलपति प्रो.जे.बी. वैशंपायन ने किया। इस अवसर पर राज्यपाल श्री त्रिपाठी जी ने कहा कि डॉ. अवस्थी का साहित्य कई अर्थों में अनोखा है। उनके शब्दों में व्यंग्य की धार और संवेदना की मार्मिकता दोनों ही प्रचुर मात्रा में पाए जाते हैं। समाज का दर्पण से उनके साहित्य संसार को ‘भीतर घाम बाहर छांव’ में समेटने का प्रयास है। डॉ.सुरेश अवस्थी ने बताया कि यह पुस्तक उनकी पिछली पुस्तकों- सब कुछ दिखता है, नो टेंशन, व्यंग्योपैथी, चप्पा-चप्पा चरखा चले, शीत युद्ध, आंधी बरगद और लोग की समीक्षा पर केन्द्रित है। सभी पुस्तकों की भाव समीक्षा सुप्रसिद्ध समालोचक श्याम सुन्दर निगम ने की है। साक्षात्कार चक्रधर शुक्ल एवं रचनाओं का चयन डॉ.संदीप त्रिपाठी ने किया है। कार्यक्रम में साहित्य रचना को प्रख्यात रंगकर्मी साहित्यकार अंबिका वर्मा को समर्पित किया गया। कार्यक्रम में विधायक सलिल विश्नाई, विशिष्ट वक्ता डॉ.वी.एन. सिंह, डॉ.शिवकुमार दीक्षित, डॉ.अंगद सिंह, पंकज दीक्षित, डॉ.मुकेश सिंह, राजेश निगम, सतीश निगम आदि उपस्थिति रहे। (समाचार सौजन्य : चक्रधर शुक्ल)




अंतर्जीवन के व्याख्याता का भावपूर्ण स्मरण


आधुनिक हिंदी साहित्य में मनोवैज्ञानिक उपन्यासकार के रूप में इलाचंद्र जोशी का नाम प्रमुख है। विभिन्न विधाओं पर गंभीर रचनाएं उनकी हिंदी साहित्य को अमूल्य देन हैं। पात्रों की मानसिक स्थिति का जो सजीव चित्रण उनकी कहानियों और उपन्यासों में मिलता है, वह अन्यत्र दुर्लभ है। उक्त विचार प्रो.यासमीन सुल्ताना नकवी ने भाव जगत के कथाकार इलाचंद्र जोशी के जन्मदिन पर केंद्रीय हिंदी संस्थान, आगरा व महादेवी वर्मा सृजन पीठ के संयुक्त तत्वावधान में अल्मोड़ा में आयोजित ‘इलाचंद्र जोशी: स्मृतियाँ एवं प्रासंगिकता’ विषयक दो-दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी तथा रचना-पाठ में बतौर मुख्य वक्ता व्यक्त किए। 


        विशिष्ट अतिथि प्रो.नवीन चन्द्र लोहनी ने कहा कि प्रेमचंद ने अपनी कहानियों में सामाजिक कुरीतियों के बाह्य जगत को उद्घाटित किया परंतु इलाचंद्र जोशी ने व्यक्ति के बाह्य जगत से कहीं अधिक महत्व आंतरिक जगत को दिया है। समीक्षक डॉ.सिद्धेश्वर सिंह ने कहा कि चरित्रों के भाव जगत के सूक्ष्म विश्लेषण में उनके उपन्यास बेजोड़ हैं। उनकी विशेषता थी कि अध्ययनशील होते हुए भी दार्शनिकता का प्रभाव उनकी रचनाओं में
नहीं दिखाई पड़ता जिस कारण वे आम आदमी के अधिक निकट हैं। महादेवी वर्मा सृजन पीठ के निदेशक प्रो.देव सिंह पोखरिया के अनुसार इलाचंद्र जी ने पहाड़ी जीवन पर केन्द्रित अपना एक मात्र उपन्यास ‘ऋतुचक्र’ महादेवी वर्मा के रामगढ़ स्थित घर ‘मीरा कुटीर’ में 1960 में प्रवास के दौरान ही लिखा था। 
         संगोष्ठी की अध्यक्षता करते हुए प्रो. शेर सिंह बिष्ट ने कहा कि इलाचंद्र जोशी अपने समय के उन प्रबुद्ध साहित्यकारों में थे जिन्होंने भारतीय एवं विदेशी साहित्य का व्यापक अध्ययन किया था। कार्यक्रम के दूसरे सत्र में कई कथाकारों ने अपनी कहानियों एवं कवियों ने कविताओं का पाठ किया। (समाचार सौजन्य : मोहन सिंह रावत)




डॉ. अरुण जी को स्वयंभू सम्मान


विगत 5 अप्रैल को अपभ्रंश साहित्य अकादमी, जयपुर द्वारा प्रसिद्ध जैन तीर्थ ‘श्री महावीर जी’ में वर्ष 2013 का राष्ट्रीय स्वयंभू सम्मान अखिल भारतीय दिगंबर जैन परिषद के अध्यक्ष न्यायमूर्ति श्री एन.के. जैन, परिषद के मंत्री श्री महेंद्र कुमार पाटनी एवं अपभ्रंश भाषा और साहित्य के प्रकांड विद्वान डॉ. कमलचंद सोगाणी के कर-कमलों से अपभ्रंश व जैन साहित्य के प्रतिष्ठित विद्वान व साहित्यकार डॉ. योगेन्द्र नाथ शर्मा ‘अरुण’ जी को प्रदान किया गया। सम्मान स्वरूप उन्हें रु. इक्यावन हज़ार रुपए का चैक, प्रशस्ति पत्र, अंगवस्त्र और जैन धर्म का मूल्यवान साहित्य भेंट किया गया। डॉ. अरुण जी को यह सम्मान उनके शोध-विनिबन्ध ‘पुष्पदंत’ के लिए दिया गया है। (समाचार प्रस्तुति : अविराम समाचार डेस्क)



व्यंग्य संग्रह ‘जिंदगी के रंग’ का लोकार्पण

श्री कांतिलाल ठाकरे के व्यंग्य संग्रह ‘ज़िन्दगी के रंग’ का लोकार्पण समारोह विगत दिनों प्रीतमलाल दुआ सभागृह में सृजन संवाद द्वारा संपन्न हुआ। अध्यक्षता करते हुए डॉ.सतीश दुबे ने कहा कि ‘श्री ठाकरे निरंतर लिख रहे हैं। यह उनकी रचनात्मकता की प्रगति के नित नए सोपान हैं।’ डॉ जवाहर चौधरी, श्री कृष्णकांत निलोसे, डॉ.कला जोशी, श्री वेद हिमांशु आदि वक्ताओं ने संग्रह की रचनात्मकता पर प्रकाश डाला। संचालन दीपा व्यास, स्वागत राज केसरवानी तथा आभार प्रदर्शन वेद हिमांशु ने किया। (समाचार प्रस्तुति : वेद हिमांशु)




विश्व पुस्तक मेला दिल्ली में नवगीत पर परिचर्चा

       प्रगति मैदान में संपन्न विश्व पुस्तक मेला 2015 में ‘समाज का प्रतिबिम्ब हैं नवगीत’ विषय पर ओमप्रकाश तिवारी के संचालन में व्यापक परिचर्चा हुई। पुस्तक मेले में पहली बार नवगीत विधा पर केन्द्रित आयोजन में बहार से पधारे तथा स्थानीय रचनाधर्मियों ने उत्साहपूर्वक सहभागिता की। संचालक एवं नवगीतकार ओमप्रकाश तिवारी मुम्बई ने विषय प्रवर्तन करते हुए लगभग 50 वर्ष से लिखे जा रहे किन्तु छन्दहीन कविता जैसी अन्य विधाओं की तुलना में नवगीत की अनदेखी किये जाने पर चिंता व्यक्त करते हुए इस धारणा को निराधार बताया कि छांदस रचनाएं जीवन की समस्याओं का बयान नहीं कर पातीं।
       गीत विधा को भारतीय समाज का अभिन्न अंग बताते हुए नवगीतकार सौरभ पांडे ने नवगीत के औचित्य को प्रतिपादित करते हुए कहा कि गीत अमूर्त-वायवीय तत्त्वों की प्रतीति सरस ढंग से करा पाते हैं, जबकि नवगीत आज के समाज के सुख-दुख को सरसता से सामने लाते हैं।
       चर्चित नवगीतकार-नवगीत समीक्षक आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’ ने आदि मानव के जीवन में गीति के उत्स का इंगित करते हुए नवता युक्त कथ्य, लय, सम्प्रेषणीयता, संक्षिप्तता, चारूत्व, लाक्षणिकता, सामयिकता, छान्दसिकता तथा स्वाभाविकता को नवगीत के तत्व बताते हुए उसे युगाभिव्यक्ति करने में समर्थ बताया।
        वरिष्ठ नवगीतकार राधेश्याम बंधु ने छांदस साहित्य के प्रति दुराग्रही दृष्टिकोण की आलोचना करते हुए, छन्दहीन साहित्य को नीरस, एकांगी तथा अपूर्ण बताया। उन्होंने छंद युक्त रचनाओं की विशेषता बताते हुए कहा कि जनसामान्य की मनोभावनाएँ गीतों के जरिए ही अभिव्यक्त और अनुभूत की सकती हैं और यह दायित्व आजके नवगीतकार बखूबी निभा रहे हैं।
       चर्चा का समापनकर्ता वरिष्ठ नवगीतकार डॉ. जगदीश व्योम के अनुसार नई कविता जो बात छंदमुक्त होकर कहती है, वही बात लय और शब्द प्रवाह के माध्यम से नवगीत व्यक्त करते हैं। परिसंवाद के पश्चात पुस्तक मेले के साहित्य मंच पर सर्वश्री जगदीश पंकज, योगेंद्र शर्मा, डॉ. राजीव श्रीवास्तव, शरदिंदु मुखर्जी, वेद शर्मा, राजेश श्रीवास्तव, गीता पंडित, महिमाश्री, गीतिका वेदिका आदि नवगीतकारों ने नवगीत के विभिन्न आयामों पर चर्चा कर शंकाओं का समाधान पाया। (समाचार : संजीव वर्मा सलिल)





शब्द प्रवाह साहित्य मंच का सम्मान समारोह संपन्न
शब्द प्रवाह साहित्य मंच ने किया साहित्यकारों को सम्मानित
शब्द प्रवाह एवं तीन पुस्तकों का हुआ विमोचन

      साहित्यिक संस्था शब्द प्रवाह साहित्य मंच उज्जैन द्वारा छठे अखिल भारतीय पुरस्कार एवं सम्मान 22मार्च 2015 रविवार को कालिदास संस्कृत अकादमी में आयोजित भव्य समारोह में प्रदान किए गये। शब्द प्रवाह के संपादक श्री संदीप सृजन एवं डॉ राजेश रावल ने जानकारी देते हुए बताया की आयोजन में विक्रम वि. वि. के पूर्व कुलपति डॉ रामराजेश मिश्र की अध्यक्षता में कुलानुशासक डॉ शैलेन्द्रकुमार शर्मा, अन्तर्राष्ट्रीय प्राकृत अध्ययन एवं शोध केंद्र चेन्नई के निदेशक डॉ दिलीप धींग, वरिष्ठ चिकित्सक डॉ सतिंदर कौर सलूजा ने साहित्यकारों को सम्मानित किया।
      आयोजन का मंगलाचरण आचार्य राजेश्वर शास्त्री मुसलगावकर ने किया, सरस्वती वंदना प. अरविंद सनन ने की, स्वागत उद्बोधन शब्द प्रवाह के संपादक संदीप सृजन ने दिया, सम्मानित साहित्यकारों का
परिचय कमलेश व्यास कमल ने दिया, संचालन डॉ सुरेन्द्र मीणा ने किया, आभार डॉ राजेश रावल ने माना।
      आयोजन में साहित्य के क्षेत्र में योगदान के लिए श्री परमानंद शर्मा उज्जैन को शब्द साधक सम्मान एवं डॉ इकबाल बशर देवास को सरस्वती सिंह स्मृति सम्मान प्रदान किया जाएगा। साथ ही साहित्य की विभिन्न विधाओं पर प्राप्त हुई पुस्तकों में से हिन्दी कविता के क्षेत्र में डॉ.मृदुला झा (मुंगेर, बिहार) की कृति ‘सतरंगी यादों का कारवाँ’, लधुकथा के लिए श्रीमती ज्योति जैन (इंदौर) की कृति ‘बिजूका’ एवं व्यंग्य के लिए श्री सदाशिव कौतुक (इंदौर) की कृति ‘भगवान दिल्ली में’ को प्रथम पुरस्कार प्रदान किया गया।
      इस अवसर पर ‘गजल के तत्व एवं सिद्धांत’ विषय पर डॉ इकबाल बशर का विशेष उद्बोधन हुआ तथा कोमल वाधवानी प्रेरणा की पुस्तक ‘कदम कदम पर’, अशोक शर्मा मृदुल की पुस्तक ‘मृदुल का गुलदस्ता’ व शब्द प्रवाह का विमोचन भी हुआ । (समाचार सौजन्य : संदीप सृजन, संपादक- शब्द प्रवाह, ए-99 वी.डी. मार्केट, उज्जैन / मो. 09926061800)




रमाकान्त की कृति का लोकार्पण

        रविवार 8 फरवरी 2015 लेखपाल संघ सभागार में रविवार को चर्चित कवि एवं यदि पत्रिका के संपादक रमाकांत की पुस्तक ‘बाजार हंस रहा है’ का विमोचन किया गया। कार्यक्रम का शुभारम्भ मुख्य अतिथि वरिष्ठ गीतकार गुलाब सिंह, अध्यक्ष वरिष्ठ साहित्यकार रामनारायण रमण, अतिविशिष्ट अतिथि आलोचक शिवकुमार शास्त्री एवं विशिष्ट अतिथि
अवनीश सिंह चौहान द्वारा माँ सरस्वती की प्रतिमा के समक्ष दीप प्रज्जवलन से हुआ। तदुपरांत वरिष्ठ साहित्यकार दुर्गा शंकर वर्मा दुर्गेश ने सरस्वती वंदना प्रस्तुत करने के बाद रमाकांत जी के उक्त संग्रह से कुछ गीतों को विश्लेषणात्मक ढंग से श्रोताओं के समक्ष प्रस्तुत किया। कृति पर प्रकाश डालते हुए वरिष्ठ गीतकार गुलाब सिंह ने कहा कि रमाकांत का यह संग्रह नवगीत की विरासत को आगे बढ़ाने में सक्षम है। रमाकांत के गीत समाज को न केवल नया संदेश देते हैं, बल्कि समाज की विसंगतियों को
भी बखूबी उजागर करते हैं। उन्होंने कहा कि बाज़ार हंस रहा है क्योंकि आदमी रो रहा है और जब तक आदमी रोता रहेगा तब तक समाज में अमन और चैन नहीं आ सकता। युवा गीतकार अवनीश सिंह चौहान ने उक्त संग्रह पर विस्तार से चर्चा करते हुए कहा कि रमाकांत जी रायबरेली में दिनेश सिंह की परंपरा के अकेले कवि
हैं। वह केवल गीत ही नहीं रचते, वरन वह गीत को जीते भी हैं। वह अच्छा लिखते ही नहीं, वरन अच्छा बोलते भी हैं; वह अच्छा सोचते ही नहीं, वरन अच्छा करते भी हैं। यह बात उनकी लेखनी, उनकी वाणी, उनके व्यवहार से स्पष्ट हो जाती है। जहाँ तक उनके इस गीत संग्रह की बात है तो इसमें बाजारवाद की गिरफ़्त में समकालीन जीवन और उसकी जटिलताओं, जड़ताओं और अवसादों का सटीक चित्रण देखने को मिलता है।

       वरिष्ठ आलोचक एवं शिक्षाविद शिवकुमार शास्त्री ने कहा कि पुस्तक न केवल बाजार की विसंगतियों को प्रस्तुत करती है, बल्कि बाजार के तौर तरीकों से भी अवगत कराती है। बाज़ार किस तरह से हमें सम्मोहित करता है और हमें निचोड़ता है इसकी सटीक व्यंजना इस गीत संग्रह में है। सुपरिचित ग़ज़लगो शमशुद्दीन अज़हर ने इस संग्रह की रचनाओं को समाज का आईना मानते हुए कहा कि रमाकांत जी जैसा देखते हैं वैसा ही लिखते हैं। साहित्यसेवी विनोद सिंह गौर ने इस कृति को अपने समय का जरूरी दस्तावेज मानते हुए रमाकांत को शुभकामनायें दीं।
     गीतकार रमाकांत ने अपनी रचना-प्रक्रिया को विस्तार से बतलाते हुए कहा कि उन्होंने अपने आस-पास
जो भी देखा, सुना और समझा है, उसे अपने गीतों में व्यक्त करने का प्रयास किया है। उन्होंने बतलाया कि उनकी ये लयात्मक अभिव्यक्तियां जीवन की सुंदरता के साथ उसकी कलुषता को भी सहज भाषा में प्रस्तुत करती हैं।
      अपने अध्यक्षीय उद्बोधन में रामनारायण रमण ने रमाकांत के गीतों की भाषा को सहज एवं बोधगम्य बतलाया। उन्होंने कहा कि गीत में भाषा की मुख्य भूमिका होती है, शायद इसीलिये रमाकांत के गीतों की भाषा जन-सामान्य के इर्द-गिर्द घूमती है। साथ ही उनकी यह कृति उनके पारदर्शी व्यक्तित्व को भी उजागर करती है।
     इस अवसर पर आनंद, प्रमोद प्रखर, राधेरमण त्रिपाठी, निशिहर, राममिलन, राजेंद्र यादव, राकेश कुमार, राम कृपाल आदि मौजूद रहे। कार्यक्रम का संचालन सुपरिचित कवि जय चक्रवर्ती और आभार अभिव्यक्ति लेखपाल संघ के पूर्व अध्यक्ष हीरालाल यादव ने की।(समाचार सौजन्य : अवनीश सिंह चौहान)





डॉ. यायावर को ‘ब्रजभाषा विभूषण’ सम्मान



साहित्य मण्डल, श्रीनाथद्वारा द्वारा आयोजित पाटोत्सव ब्रजभाषा महोत्सव में डॉ. रामसनेहीलाल शर्मा ‘यायावर’ को उनकी ब्रजभाषा और साहित्य सेवाओं के लिए ‘ब्रजभाषा-विभूषण’ की उपाधि से सम्मानित किया गया। (समाचार सौजन्य :  डॉ.रामसनेहीलाल शर्मा ‘यायावर’ )






शिलांग में राष्ट्रीय हिंदी विकास सम्मेलन सम्पन्न


पूर्वाेत्तर हिंदी अकादमी के तत्वावधान में दिनांक 5 जून से 7 जून 2015 तक श्री राजस्थान विश्राम भवन, शिलांग में राष्ट्रीय हिंदी विकास सम्मेलन का भव्य आयोजन किया गया। 5 जून को सम्मेलन का उद्घाटन मुख्य अतिथि श्रीमती उर्मि कृष्ण ने अनेक वरिष्ठ साहित्यकारों एवं गणमान्य व्यक्तियों की उपस्थिति में दीप प्रज्ज्वलित कर किया। इस सत्र में पूर्वाेत्तर वार्ता,  शुभ तारिका के डा. महाराज कृष्ण जैन विशेषांक, वैश्य परिवार पत्रिका, श्री बिमज की पुस्तक भावाञ्जलि, श्री रण काप्ले के कविता-संग्रह भय, डा.दविन्दर कौर होरा की कविता-संग्रह खिली कलियाँ, डा. बीना रानी गुप्ता की पुस्तक महिला साहित्याकरों का नव-चिंतन, श्रीमती लक्ष्मी रूपल की पुस्तक बंजारे हैं शब्द और श्री प्रवीन विज की पुस्तक घाव आज भी हरे हैं का लोकार्पण मंचस्थ अतिथियों ने किया। इस सत्र के दौरान पाथेय साहित्य कला अकादमी, जबलपुर की ओर से कई विभूतियों को सम्मानित किया गया। शाम को आयोजित काव्य संध्या में अनेक कवियों ने काव्यपाठ किया। 6 जून को प्रथम सत्र में डा. गार्गी शरण मिश्र मराल की अध्यक्षता में ‘पूर्वाेत्तर भारत में हिंदी का प्रचार’ विषय पर राष्ट्रीय संगोष्ठी का आयोजन असम राष्ट्रभाषा प्रचार समिति, गुवाहाटी तथा पूर्वाेत्तर हिंदी अकादमी के संयुक्त तत्वावधान में किया गया। द्वितीय सत्र में देश भर के अनेक साहित्यकारों को सम्मानित किया गया। तीसरे सत्र में सांस्कृतिक संध्या का आयोजन सम्पन्न हुआ। 7जून को सभी लेखकों ने बस द्वारा मतिलांग पार्क, मौसमाई गुफा, थांगखरांग पार्क आदि स्थानों का भ्रमण किया। (समा. सौजन्य : डॉ. अकेला भाइ)




चन्द्रसेन विराट सम्मानित



विगत 19 मई 2015 को भोपाल भोपाल की प्रतिष्ठित साहित्य संस्था दुष्यंत संग्रहालय ने कवि चन्द्रसेन विराट को उनकी साहित्यिक सेवाओं के लिए ‘सुदीर्घ साधना सम्मान-2014’ प्रदान किया। उन्हें यह सम्मान राजुरकर राज, एन. लाल, बटुक चन्द्र वैदी, पद्मश्री ज्ञान चतुर्वेदी एवं श्री वाले आदि की उपस्थिति में प्रदान किया गया। (समाचार सौजन्य : चन्द्रसेन विराट)






बाल साहित्य पुरस्कारों हेतु प्रविष्टियाँ आमन्त्रित
राजकुमार जैन ‘राजन’ अकोला द्वारा बाल साहित्य पर कई पुरस्कारों का आयोजन किया जा रहा है। पं. सोहनलाल द्विवेदी बाल साहित्य पुरस्कार हेतु हिन्दी में बाल साहित्य पर किसी भी विधा की पुस्तके विचारार्थ भेजी जा सकती हैं। ‘युवा बाल साहित्यकार सम्मान’ व ‘डॉ.राष्ट्रबन्धु स्मृति वरिष्ठ बाल साहित्यकार सम्मान’ हेतु उपलब्धियों का विवरण तथा ‘चन्द्रसिंह बिरकाली राजस्थानी बाल साहित्य पुरस्कार’ हेतु राजस्थानी बाल साहित्य की कृतियाँ आमंत्रित की गई हैं। निशुल्क प्रविष्टियाँ 20 नवम्बर 2015 तक राजकुमार जैन (मो.09828219919), चित्रा प्रकाशन, अकोला-312205, चित्तौड़गढ़, राज. के पते पर आमंत्रित की गई हैं। (समाचार सौजन्य : राजकुमार जैन ‘राजन’)




उमेश शर्मा को भीलवाड़ा में दोहरा सम्मान




भीलवाड़ा की संस्था ‘साहित्यांचल संस्थान’ ने अष्ठम राष्ट्रीय साहित्यांचल शिखर सम्मान 2015 का सफल आयोजन किया। इस समारोह में देश भर के अनेक साहित्यकारों ने भाग लिया। कार्यक्रम के मुख्य अतिथि डॉ.देवेन्द्र नाथ साह, सम्माननीय अतिथि डॉ. हरिश ओझा एवं मुख्य वक्ता श्री ए.वी.सिंह थे। इसी कार्यक्रम में हरिद्वार के युवा कवि उमेश शर्मा को ‘शैलेन्द्र मरमट राष्ट्रीय साहित्यांचल सृजन सम्मान प्रदान किया गया। इसी दिन सामयिकी संस्था के अध्यक्ष श्री श्यामसुन्दर ‘सुमन’ द्वारा उमेश शर्मा को उनके हाइकु संग्रह ‘स्पंदन’ हेतु ‘हाइकु सम्राट सम्मान’ से सम्मानित किया गया। (समाचार सौजन्य : उमेश शर्मा)



   
अम्बिका प्रसाद दिव्य स्मृति पुरस्कारों हेतु
हिन्दी में उपन्यास, कहानी, कविता, व्यंग एवं निबन्ध विधाओं की 1 जनवरी 2013 से लेकर 31दिसम्बर 2014 के मध्य प्रकाशित पुस्तकें अम्बिका प्रसाद दिव्य स्मृति पुरस्कारों हेतु 30 अक्टूबर 2015 तक श्रीमती राजो किंजल्क, साहित्य सदन, 145-ए, सांईनाथ नगर सी-सेक्टर, कोलार रोड, भोपाल-462042 के पते पर आमंत्रित की गई हैं। विस्तृत जानकारी मो. 09977782777 व ईमेल- jagdishkinjalk@gmail.com  पर ली जा सकती है। (समा. सौजन्य : जगदीश किंजल्क)



                             
राना लिधौरी जबलपुर में सम्मानित



श्री राजीव नामदेव ‘राना लिधौरी’ को लघुकथा के क्षेत्र में योगदान के लिए म.प्र. लघुकथाकार परिषद जबलपुर ने रानी दुर्गावती संग्रहालय के सभाकक्ष में ‘लघुकथा गौरव सम्मान’ से सम्मानित किया। डॉ.सुमित्र कर की अध्यक्षता में कार्यक्रम के मुख्य अतिथि प्रो. हरिशंकर दुवे व विशिष्ट अतिथि राधेश्याम पाठक ‘उत्तम’ थे। डॉ.कुँवर प्रेमिल व डॉ. मोहम्मद मुइनुद्दीन ‘अतहर’ द्वारा संपादित ‘प्रतिनिधि लघुकथाएँ’ कृति व ‘लघुकथा अभिव्यक्ति’ पत्रिका का विमोचन भी किया गया। इसी बीच राना लिधौरी को अखिल भारतीय बुंदेलखण्ड साहित्य एवं संस्कृति परिषद जिला इकाई टीकमगढ़ का महामंत्री भी बनाया गया है। राना लिधौरी का हाइकु संग्रह ‘नौनी लगे बुंदेली’ बुंदेली का पहला हाइकु संग्रह है। (समाचार सौजन्य : राजीव नामदेव ‘राना लिधौरी)

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