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शुक्रवार, 9 जनवरी 2015

गतिविधियाँ

अविराम  ब्लॉग संकलन :  वर्ष  : 4,   अंक  : 03-04,  नवम्बर-दिसम्बर  2014 

{आवश्यक नोट-  कृपया संमाचार/गतिविधियों की रिपोर्ट कृति देव 010 या यूनीकोड फोन्ट में टाइप करके वर्ड या पेजमेकर फाइल में या फिर मेल बाक्स में पेस्ट करके ही भेजें; स्केन करके नहीं। केवल फोटो ही स्केन करके भेजें। स्केन रूप में टेक्स्ट सामग्री/समाचार/ रिपोर्ट को स्वीकार करना संभव नहीं है। ऐसी सामग्री को हमारे स्तर पर टाइप करने की व्यवस्था संभव नहीं है। फोटो भेजने से पूर्व उन्हें इस तरह संपादित कर लें कि उनका लोड 02 एम.बी. से अधिक न रहे।}  




शताब्दी पुरस्कार घोषित
 श्री मध्यभारत हिन्दी साहित्य समिति द्वारा वर्ष 2013-14 का एक लाख रुपये का शताब्दी राष्ट्रीय पुरस्कार कवि, उपन्यासकार, नाटककार, रंगकर्मी डॉ.प्रभात कुमार भट्टाचार्य को तथा रुपये पचास हजार का प्रादेशिक पुरस्कार ख्यात व्यंग्यकार ज्ञान चतुर्वेदी को उनके दीर्घ साहित्यिक अवदान के लिए दिया जाएगा। डॉ. गिरिराज किशोर, डॉ. धनंजय वर्मा और डॉ. कमलकिशोर गोयनका की चयन समिति ने सर्वसम्मति से इन पुरस्कारों की घोषणा की है। परस्कृत साहित्यकारों को एक समारोह में सम्मान प्रदान किए जायेंगे। (समाचार प्रस्तुति :  श्री मध्यभारत हिन्दी साहित्य समिति, इन्दौर) 



संस्कृति कर्म को प्रोत्साहित करना ना भूले मीडिया : जवाहर कर्नाटक 
राष्ट्रीय परिसंवाद एवं सम्मान समारोह में विद्वानो ने जताई चिंता

उज्जैन। बदलते दौर और व्यावसायिकता का गहरा प्रभाव पत्रकारिता पर दिखाई दे रहा हैं। ऐसे में भारतीय मीडिया जगत संस्कृति कर्म को प्रोत्साहित करना भूलने लगा है, जबकि विदेशो में हमारी संस्कृति के आर्वहृर्षण को जिंदा रखा जा रहा है। यहां के मीडिया को चाहिये कि भाषा और संस्कृति को लेकर सजगता लाये और लिपि को बचाने में भी अपना योगदान दें। 
यह सीख वरिष्ठ मीडिया विशेषज्ञ एवं बैंक ऑफ बडौदा मुंबई के उप महाप्रबंधक डॉ.जवाहर कर्नाटक ने दी। वे रविवार को कालिदास अकादमी के अभिरंग नाट्यगृह में आयोजित राष्ट्रीय परिसंवाद एंव सम्मान समारोह में बोल रहे थे। संस्था कृष्णा बसंती और झलक निगम सांस्कृतिक न्यास के इस आयोजन में दैनिक भास्कर के एमपी-2 हेड नरेन्द्र सिंह अकेला ने भी पत्रकारिता के क्षेत्र में आ रहे बदलाव पर अपने विचार रखा, कहा कि बीते दौर में सीमित संसाधनों में पत्रकारिता का बेहतर निर्वहन होता था। आज संसाधन और सुविधाएं बढी तो पत्रकारिता के ज्ञान का अभाव दिखाई देता है। इस क्षेत्र के लोगों में समर्पण और लगन के साथ ही अपने दायित्वों की जिम्मेदारी का अभाव झलकता है। समारोह की अध्यक्षता कर रहें विक्रम विवि के कुलानुशासक डॉ.शैलेन्द्र कुमार शर्मा ने संस्कृति और समाज को गति देने में पत्रकारिता को आगे आने की बात की। डॉ.लक्ष्मीनारायण पयोधि ने आंचलिक पत्रकारिता के लिए क्षेत्रीय समाज और संस्कृति की पृष्ठभूमि का ज्ञान जरुरी होने पर जोर दिया। वरिष्ठ पत्रकार एवं कला समीक्षक विनय उपाध्याय ने संस्कृति कर्म को लेकर मीडिया में उपेक्षा का का जिक्र करते हुए इसे अनुचित करार दिया और कला और जीवन के अटूट रिश्ते को समझने की बात कही। डॉ. भगवती लाल राजपुरोहित ने स्वर्गीय झलक निगम के मालवी साहित्य एवं सस्कृति के क्षेत्र में उनके अवदान पर प्रकाश डाला। वरिष्ठ अधिवक्ता सुभाष गौड ने भी स्वर्गीय निगम के मालवी के संवर्धन के लिए व्यापक प्रयत्न का उल्लेख किया। कार्यक्रम के शुभारंभ में लेखिका सुशीला निर्माेही के पांचवें काव्य संग्रह ‘कलरव’ तथा अंतरराष्ट्रीय शोध पत्रिका अक्षर वार्ता का लोकापर्ण अतिथियों द्वारा किया गया। इसके अलावा प्रसन्नता शिंदे के अग्रेजी उपन्यास डिस्क्रीमिनेशन अगेंस्ट मेन ‘ए ट्रू लव टेल’ के कवर पेज का विमोचन किया। ‘कलरव’ की समीक्षा व्यंगकार डॉ.पिलकेन्द्र अरोरा ने की। अतिथि परिचय डॉ.जगदीशचंद्र शर्मा ने दिया। संस्था कृष्णा बसंती की गतिविधियों एवं उद्देश्यों की जानकारी संस्था अध्यक्ष डॉ.मोहन बैरागी ने दी, वहीं झलक निगम सांस्कृतिक न्यास की जेड श्वेतिमा निगम ने भी संस्था की जानकारी दी। इसी बीच संस्था कृष्णा बसंती द्वारा साहित्य, पत्रकारिता, लेखन एवं कला आदि क्षेत्र में योगदान देने वालों को सम्मानित किया गया। अतिथि स्वागत श्वेतिमा निगम, रुचिर प्रकाश निगम, डॉ. मोहन बैरागी, निशा बैरागी, भावना निगम, डॉ.ओ.पी.वैष्णव, सुरेश बैरागी, कृष्णदास बैरागी आदि ने किया। सरस्वती वंदना मालवी कवि मोहन सोनी ने की। परिसंवाद का संचालन श्री जीवनप्रकाश आर्य ने किया। वृहद काव्य गोष्ठी का संचालन कृष्णदास बैरागी द्वारा किया गया, जबकि पुस्तक विमोचन का संचालन कार्यक्रम का संचालन राजेश चौहान राज ने किया। आभार कृष्णा बसंती के डॉ.ओ.पी.वैष्णव ने माना।
     इस अवसर पर साहित्य के क्षेत्र में वरिष्ठ कवि मोहन सोनी, व्यंग्यकार पिलकेन्द्र अरोरा, शायर रमेशचंद्र ‘सोज’, कवि अरविंद त्रिवेदी ‘सनन’, गीतकार वैहृलाश ‘तरल’, लघुकथाकार संतोष सुपेकर, रचनाकार संदीप सृजन, व्यंग्यकार राजेन्द्र देवधरे, गीतकार राजेश चौहान ‘राज’, पक्षी वैज्ञानिक डॉ.जे. पी. एन. पाठक, चित्रकार अक्षय आमेरिया, पत्रकार राजीव सिंह भदौरिया (दैनिक भास्कर), रवि चंद्रवंशी (पत्रिका), निरुक्त भार्गव (प्रहृीप्रेस) और सुधीर नागर (नई दुनिया) के अलावा इलेक्ट्रानिक मीडिया से फोटो जर्नलिस्ट प्रकाश प्रजापत (नईदुनिया) तथा सुनील मगरिया (हिंदुस्तान टाईम्स) को सम्मानित भी किया गया। (समाचार प्रस्तुति :  डॉ.मोहन बैरागी, अध्यक्ष, संस्था कृष्णा बसंती)





150 वीं जयंती पर 
आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी का भावपूर्ण स्मरण

हिंदी भाषा और साहित्य के विकास एवं परिष्कार में आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी का योगदान अविस्मरणीय है। उनके युग में हिंदी साहित्य की श्रीवृद्धि तो हुई ही, साहित्यालोचना के क्षेत्र में भी उल्लेखनीय कार्य हुए। उक्त विचार महात्मा गांधी अंतर्राष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय, वर्धा के कुलपति प्रो. गिरीश्वर मिश्र ने युग प्रवर्तक आलोचक एवं सम्पादक आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी की 150वीं जयंती के अवसर पर पिछले दिनांें (28 व 29 अगस्त, 2014) कुमाऊँ विश्वविद्यालय की रामगढ़ (नैनीताल) स्थित महादेवी वर्मा सृजन पीठ में आयोजित ‘आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी और हिंदी नवजागरण के सवाल’ विषयक दो-दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी का उद्घाटन करते हुए बतौर मुख्य अतिथि व्यक्त किए। उन्होंने कहा कि द्विवेदी जी हिंदी के प्रथम लोकवादी आचार्य हैं। वे परम्परा की शक्ति और सीमा समझकर उसके विकास में योगदान को महत्व देते हैं।  
     संगोष्ठी के मुख्य वक्ता सुप्रसिद्ध आलोचक एवं दिल्ली विश्वविद्यालय के पूर्व हिंदी विभागाध्यक्ष प्रो.गोपेश्वर सिंह ने कहा कि हिंदी आलोचना का आरंभ नवजागरण की चेतना-दृष्टि से हुआ। शुद्धता द्विवेदी जी का आदर्श था और मर्यादाबद्ध नैतिकता, साहित्य का मानदंड। द्विवेदी युग एक कालखंड का व्यक्तिवादी नाम बनकर नहीं उभरता है। वह एक युग के जीवन मूल्यों और साहित्यिक मूल्यों का प्रतिनिधित्व करता जान पड़ता है। वे आलंकारिकता के विरुद्ध सहजता का समर्थन करते हैं। उन्होंने समसामयिक मूल्यों के स्वीकरण के साथ साहित्य-बोध का नया समीक्षा शास्त्र रचने का प्रयास किया।
     हिंदी अकादमी, दिल्ली के सचिव डॉ. हरिसुमन बिष्ट ने कहा कि आलोचना की नवीन व्यावहारिक पद्धति का विकास द्विवेदी युग में ‘सरस्वती’ पत्रिका के माध्यम से हुआ। उनके नेतृत्व में यह पत्रिका उस वक्त के साहित्य का मानक-निर्धारक संस्थान बन गई थी। द्विवेदी जी नवीनता के पोषक थे और नयी परिस्थितियों में साहित्य साधना को नए दायित्वों से जोड़ना चाहते थे। उन्होंने ‘सरस्वती’ पत्रिका के माध्यम से इस कार्य को सम्पन्न किया तथा हिंदी भाषा, साहित्य और आलोचना को नयी दिशा प्रदान की। एक पत्रिका और एक व्यक्ति ने पूरे युग को किस प्रकार और कितना नियंत्रित किया, इसका उदाहरण द्विवेदी युग के अतिरिक्त दूसरा नहीं है।
     साहित्य अकादमी के उपसचिव ब्रजेन्द्र त्रिपाठी ने कहा कि जीवन मूल्यों एवं प्रतिमानों को लेकर शुरु हुए नवजागरण की सशक्त अभिव्यक्ति आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी द्वारा चलाए गए रीतिवाद विरोधी अभियान से हुई। इस अभियान ने हिंदी की सैद्धांतिक एवं व्यावहारिक समीक्षा की दिशा और दृष्टि का एक स्वरुप बिंब निर्मित किया।
     संगोष्ठी को संबोधित करते हुए महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय की साहित्य विद्यापीठ के अधिष्ठाता प्रो. सूरज पालीवाल ने कहा कि द्विवेदी युग में हिंदी आलोचना विभिन्न पद्धतियों को विकसित करती हुई उत्तरोत्तर शक्ति सम्पन्न हुई। इसी युग में पाश्चात्य साहित्य से परिचित होकर उसका स्वस्थ प्रभाव ग्रहण कर हिंदी आलोचना ने स्वतंत्र व्यंिक्तत्व प्राप्त किया। इलाहाबाद विश्वविद्यालय के हिंदी विभागाध्यक्ष प्रो. मुश्ताक अली ने कहा कि द्विवेदी जी अपने देशकाल के अनुसार साहित्य को देखते-परखते और कविता को साधारण लोगों के बीच प्रिय होते देखना चाहते थे। वे यथार्थ को काव्य के लिए आवश्यक मानते हैं। यथार्थ से
उनका तात्पर्य काव्य द्वारा अनुभूत सत्य से है। 
     समालोचक डॉ. साधना अग्रवाल ने कहा कि आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी साहित्यकार, भाषा विशेषज्ञ, आलोचक, मनोवैज्ञानिक के साथ एक समाज वैज्ञानिक थे। उन्होंने हिंदी साहित्य में आलोचना को नई दिशा प्रदान की। कुमाऊँ विश्वविद्यालय के हिंदी विभागाध्यक्ष प्रो. शेर सिंह बिष्ट ने कहा कि आचार्य द्विवेदी हिंदी योद्धा थे। उन्होंने अपने समय के प्रश्नों को अपनी लेखनी के माध्यम से जनता के समक्ष न केवल प्रस्तुत किया अपितु उनका उत्तर भी सुझाया। वे अपनी लेखनी में हमेशा सटीक भाषा का प्रयोग करते थे। 
     संगोष्ठी के विशिष्ट अतिथि कुमाऊँ विश्वविद्यालय के पूर्व कुलपति एवं सुपरटेक यूनिवर्सिटी के कुलपति प्रो. वी.पी.एस. अरोरा ने महादेवी वर्मा सृजन पीठ और महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय की आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी की 150वीं जयंती के बहाने हिंदी भाषा और साहित्य के विकास में उनके योगदान के स्मरण की इस संयुक्त पहल की सराहना की तथा उम्मीद जताई कि भविष्य में भी दोनों विश्वविद्यालय एमओयू के तहत परस्पर शैक्षिक व साहित्यिक कार्यक्रमों का आदान-प्रदान करेंगे।
    संगोष्ठी की अध्यक्षता करते हुए कुमाऊँ विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. एच.एस. धामी ने कहा कि महादेवी वर्मा सृजन पीठ ने साहित्य से जुडे़ ज्वलंत विषयों पर समय-समय पर महत्वपूर्ण वैचारिक कार्यक्रम आयोजित कर देशभर में अपनी विशिष्ट पहचान बनाई है। पीठ के स्थायित्व एवं विकास के लिए विश्वविद्यालय निरंतर प्रयासरत है तथा पीठ से संबंधित अनेक प्रस्ताव और योजनाएं शासन में विचाराधीन हैं। 
     संगोष्ठी के पहले दिन ‘सरस्वती की भूमिका’ तथा ‘सम्पत्ति शास्त्र और भारतीय समाज’ सत्रों में डॉ. रामानुज अस्थाना, डॉ. अख्तर आलम, डॉ. अधीर कुमार, डॉ. बीरपाल सिंह यादव, डॉ. शंभू दत्त पाण्डे ‘शैलेय’, डॉ. प्रभा पंत, डॉ. तेजपाल सिंह, डॉ. माया गोला, डॉ. रीता तिवारी, नीलम पाण्डे, उर्वशी, खेमकरण सोमन, अमृत कुमार, ललित चंद्र जोशी, प्रदीप त्रिपाठी, दया कृष्ण भट्ट आदि ने अपने शोध-पत्र प्रस्तुत किए। इससे पूर्व गणमान्य अतिथियों द्वारा दीप प्रज्वलन तथा आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी के चित्र पर माल्यार्पण से संगोष्ठी का शुभारंभ हुआ। स्वागत संबोधन में महादेवी वर्मा सृजन पीठ के निदेशक प्रो. देव सिंह पोखरिया ने
पीठ के कार्यक्रमों व भावी योजनाओं की जानकारी दी। इस अवसर पर त्रिभुवन गिरि के कुमाउनी उपन्यास ‘कल्याण’ का विमोचन विशिष्ट अतिथियों ने किया।
     संगोष्ठी के दूसरे दिन ‘रीतिवाद का विरोध और हिंदी आलोचना का विकास’ तथा ‘खड़ी बोली हिंदी की एकरुपता का प्रश्न’ सत्रों में डॉ. राजेश लेहकपुरे, डॉ. शशांक शुक्ला, डॉ. अशोकनाथ त्रिपाठी, डॉ. ममता पंत, डॉ. गिरीश चंद्र पंत, डॉ. ललित मोहन जोशी, मदन मोहन पाण्डेय, संजय, यशपाल रावत, प्रकाश चंद्र, राजेश प्रसाद, चंद्रकांत तिवारी, पवनेश ठकुराठी, सुनीता भण्डारी, बंदना चन्द, सोनिका रानी तथा भावना मासीवाल ने अपने शोध पत्र प्रस्तुत किए। इस अवसर पर प्रो. दिवा भट्ट, प्रो. चन्द्रकला रावत, प्रो. निर्मला ढैला बोरा, डॉ. गीता खोलिया, डॉ. शीला रजवार, डॉ. ए.के. नवीन, डॉ. ललित जलाल, डॉ. दीपा शर्मा, डॉ. हयात सिंह रावत, डॉ. महेन्द्र सिंह महरा, डी.एस. बोनाल, मनोहर सिंह वृजवाल, लक्ष्मी खन्ना ‘सुमन’, अनिल कार्की, नवीन बिष्ट, श्याम सिंह कुटौला, नीरज पंत, तफज्जुल खान, गितेश त्रिपाठी, विक्रम सिंह, कृष्णा सिंह, पुष्पा गैड़ा, गौरव त्रिपाठी, संजय पंत, सुरेश चंद्र आर्य, उमा जोशी आदि उपस्थित थे। संचालन पीठ के शोध अधिकारी मोहन सिंह रावत ने किया तथा धन्यवाद महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय की अकादमिक संयोजक डॉ. शोभा पालीवाल ने व्यक्त किया। (समाचार प्रस्तुति : मोहन सिंह रावत, मल्ला कृष्णापुर, तल्लीताल, नैनीताल-263 002, उत्तराखण्ड)




देवपुत्र कार्यालय में लघुकथा विमर्श


बच्चों की कल्पना शीलता को सृजन के नये आयाम देने हेतु प्रतिबद्ध सुप्रसिद्ध बाल मासिक देवपुत्र द्वारा पत्रिका के संवाद नगर स्थित कार्यालय में लघुकथा विमर्श की अभिनव संगोष्ठी आयोजित की गयी। देवपुत्र के प्रधान संपादक की विशेष उपस्थिति में प्रदेश के चर्चित लघुकथा लेखकों सर्व श्री सुरेश शर्मा, जवाहर चौधरी, वेद हिमांशु, ज्योति जैन, गोपाल महेश्वरी, नन्दलाल भारती, अल्का करवड़े, प्रतिभा सक्सेना, मनोज सेवलकर आदि ने अपनी ताजातरीन लघुकथाओं का पाठ किया। पठित लघुकथाओं पर कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रहे जाने माने साहित्यकार श्री सूर्यकान्त नागर ने व्यापक प्रतिक्रिया वक्तव्य प्रस्तुत किया। विमर्श संगोष्ठी का संचालन देवपुत्र के कार्यकारी संपादक श्री विकास दवे ने एवं आभार प्रदर्शन श्री गोपाल महेश्वरी ने किया।   (समाचार प्रस्तुति : वेद हिमांशु )




 श्री जयकृष्ण राय ‘तुषार’ को ‘देवराज वर्मा उत्कृष्ट साहित्य सृजन सम्मान-2014’ 


मुरादाबाद - साहित्यिक संस्था ‘अक्षरा’ के तत्वावधान में कंपनी बाग़, मुरादाबाद स्थित स्वतंत्रता संग्राम सेनानी भवन के सभागार में कीर्तिशेष श्री देवराज वर्मा की नौवीं पुण्यतिथि पर दिनांकः 07 दिसम्बर, 2014 को सम्मान-समारोह का आयोजन किया गया जिसमें इलाहाबाद के वरिष्ठ नवगीतकार श्री जयकृष्ण राय ‘तुषार’ को उनकी सद्यः प्रकाशित नवगीत-कृति ‘सदी को सुन रहा हूँ मैं’ के लिए अंगवस्त्र, मानपत्र, प्रतीक चिन्ह, श्रीफल नारियल सहित सम्मान राशि भेंटकर ‘देवराज वर्मा उत्कृष्ट साहित्य सृजन सम्मान-2014’ से सम्मानित किया गया।
      कार्यक्रम का शुभारम्भ माँ शारदा के चित्र पर माल्यार्पण तथा दीप प्रज्वलन एवं स्व. श्री देवराज वर्मा के चित्र पर पुष्पांजली से हुआ । सर्वप्रथम वरिष्ठ कवियित्री डा. प्रेमवती उपाध्याय द्वारा सरस्वती वंदना प्रस्तुत की गई। तत्पश्चात संस्था के संयोजक योगेन्द्र वर्मा ‘व्योम’ ने बताया कि-‘साहित्यिक चेतना के धनी स्व. श्री देवराज वर्मा की पुण्यस्मृति में प्रतिवर्ष आयोजित किया जाने वाला यह आयोजन राष्ट्रभर साहित्य-सृजकों की मेधा को समर्पित है, संस्था अब तक प्रख्यात शायरा डा. मीना नक़वी (मुरादाबाद), वरिष्ठ गीतकार श्री राम अधीर (भोपाल), डा. ओमप्रकाश सिंह (रायबरेली), डा. बुद्धिनाथ मिश्र (देहरादून), श्री श्यामनारायण श्रीवास्तव ‘श्याम’ (लखनऊ), श्री देवेन्द्र ‘सफ़ल’ (कानपुर), युवाकवि श्री राकेश ‘मधुर’ (झज्जर-हरियाणा), वरिष्ठ शायर श्री ज़मीर ‘दरवेश’ (मुरादाबाद) को सम्मानित कर गौरवान्वित है। इस वर्ष नवगीत-कृति ‘सदी को सुन रहा हूँ मैं’ के कवि श्री जयकृष्ण राय ‘तुषार’ (इलाहाबाद) को उनकी उत्कृष्ट रचनाधर्मिता को सम्मानित करते हुए संस्था गर्व की अनुभूति कर रही है।’ 
इस अवसर पर कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रहे विख्यात नवगीतकार डॉ. माहेश्वर तिवारी ने कहा कि ‘श्री तुषार के नवगीतों में जहाँ तेज़ी से बदलते परिवेश और वर्तमान समय में सामाजिक विद्रूपताओं, छीजते सामाजिक मूल्यों एवं शह्री जीवन की खटास के प्रति चिन्ता झलकती है वहीं बिम्ब विधान व शिल्प प्रभावशाली ढंग से समाविष्ट है।’ मुख्य अतिथि प्रसिद्ध साहित्यकार श्री राजीव सक्सेना ने कहा कि ‘गीत काव्य का वह स्वरूप है जिसमें जीवन-जगत की रागात्मकता की सुगंध भी है और संस्कारों का उजलापन भी। तुषारजी के गीतों-नवगीतों में कथ्य की ताज़गी और शिल्प का पैनापन उनकी रचनात्मक क्षमता व कौशल को प्रतिबिम्बित करता है।’ विशिष्ट अतिथि मशहूर शायर श्री मंसूर उस्मानी ने कहा कि ‘सम्मान प्रदान किए जाने की रवायत सदियों से चल रही है, आज जबकि अनेक सरकारी व ग़ैरसरकारी सम्मानों के चयन पर उंगलियाँ उठने लगी हैं, ऐसे में अपनी पारदर्शी चयन-प्रक्रिया के कारण एक छोटे-से शह्र का यह छोटा-सा सम्मान बहुत बड़ा बन जाता है, तुषारजी को इस बड़े सम्मान के लिए मुबारक़बाद।’ सुप्रसिद्ध साहित्यकार डा. अजय ‘अनुपम’ का आलेख वाचन करते हुए कवि श्री अम्बरीश गर्ग ने कहा कि ‘तुषारजी के जनपक्षधर नवगीत आज की लहूलुहान मानवीय संवेदनाओं के विरुद्ध युद्धघोष हैं, रूपवादी प्रयोगधर्मिता की गिरफ़्त में फँसे हुए नहीं हैं।’ गीतकार श्री आनंद कुमार ‘गौरव’ ने कहा कि ‘तुषारजी के नवगीतों में अपने समय का युगबोध, संस्कार, संस्कृति, शृंगार, राष्ट्रभक्ति प्रत्येक आयाम के अलग-अलग फ़लक हैं।’ कार्यक्रम में सम्मान के पश्चात श्री जयकृष्ण राय ‘तुषार’ के एकल काव्य-पाठ का भी आयोजन किया गया। 
       इसके साथ-साथ कार्यक्रम में स्थानीय साहित्यकारों सर्वश्री ब्रजभूषण सिंह गौतम ‘अनुराग’, अशोक विश्नोई, जिया ज़मीर, अतुल कुमार जौहरी, शिशुपाल ‘मधुकर’, श्रीमति बालसुन्दरी तिवारी, शिवअवतार ‘सरस’, राजीव ‘प्रखर’, रामसिंह ‘निशंक’, विवेक कुमार ‘निर्मल’, अम्बरीश गर्ग, डा.मीना नक़वी, डा. प्रेमवती उपाध्याय, डा. पूनम बंसल, राजेश भारद्वाज, डॉ. महेश ‘दिवाकर’, यू.पी.सक्सेना ‘अस्त’, रामदत्त द्विवेदी, रघुराज सिंह ‘निश्चल’, ओमकार सिंह ‘ओंकार’, विकास मुरादाबादी, फक्कड़ मुरादाबादी, अंजना वर्मा, डा. राकेश ‘चक्र’, अनवर क़ैफ़ी, श्रेष्ठ वर्मा, डा. मनोज रस्तौगी, प्रतिष्ठा वर्मा, दीक्षा वर्मा, सुप्रीत गोपाल, के.पी.सिंह ‘सरल’, शैलेष त्यागी, पवन कुमार, शिवांश वर्मा, प्रशांत सिंह, पंकज वर्मा आदि उपस्थित रहे । कार्यक्रम का सफल संचालन वरिष्ठ शायर डा. कृष्णकुमार ‘नाज़’ ने किया तथा आभार अभिव्यक्ति संस्था के संयोजक योगेन्द्र वर्मा ‘व्योम’ ने प्रस्तुत की ।  (समाचार प्रस्तुति : योगेन्द्र वर्मा ‘व्योम’, संयोजक : साहित्यिक संस्था - ‘अक्षरा’,  मुरादाबाद, उ.प्र.)





पश्चिम बंगाल के राज्यपाल ने कृष्ण कुमार यादव को किया सम्मानित

पश्चिम बंगाल के राज्यपाल श्री केशरी नाथ त्रिपाठी ने साहित्य के क्षेत्र में विशिष्ट योगदान के लिए इलाहाबाद परिक्षेत्र के निदेशक डाक सेवाएं श्री कृष्ण कुमार यादव को सम्मानित किया। उक्त सम्मान श्री यादव को मिर्जापुर में आयोजित एक कार्यक्रम में 5 अक्टूबर, 2014 को प्रदान किया गया। राज्यपाल ने शाल ओढाकर और सम्मान पत्र देकर श्री यादव को सम्मानित किया। गौरतलब है कि सरकारी सेवा में उच्च पदस्थ अधिकारी होने के साथ-साथ साहित्य, लेखन और ब्लॉगिंग के क्षेत्र में भी चर्चित श्री यादव की अब तक कुल 7 पुस्तकें ष्अभिलाषाष् (काव्य-संग्रह, 2005) ष्अभिव्यक्तियों के बहानेष् व ष्अनुभूतियाँ और विमर्शष् (निबंध-संग्रह, 2006 व 2007), ष्प्दकपं च्वेज रू 150 ळसवतपवने ल्मंतेष् (2006), ष्क्रांति-यज्ञ रू 1857-1947 की गाथाष् (संपादित, 2007),’जंगल में क्रिकेट’ (बाल-गीत संग्रह-2012) एवं ’16 आने 16 लोग’ (निबंध-संग्रह, 2014) प्रकाशित हो चुकी हैं। उनके व्यक्तित्व-कृतित्व पर एक पुस्तक ‘‘बढ़ते चरण शिखर की ओर: कृष्ण कुमार यादव‘‘ (सं. डॉ. दुर्गाचरण मिश्र) भी प्रकाशित हो चुकी है। श्री यादव देश-विदेश से प्रकाशित
तमाम रिसर्च जनरल, पत्र पत्रिकाओं एवं इंटरनेट पर भी प्रमुखता से प्रकाशित होते रहते हैं। श्री कृष्ण कुमार यादव को इससे पूर्व भी शताधिकसम्मान और मानद उपाधियाँ प्राप्त हो चुकी हैं।   
    इस अवसर पर न्यायमूर्ति गिरिधर मालवीय, पूर्वांचल विश्वविद्यालय, जौनपुर  के कुलपति प्रो. पीयूष रंजन अग्रवाल, इग्नू के प्रो चांसलर प्रो. नागेश्वर राव, बनारस हिन्दू विश्विद्यालय के पूर्व कुलपति प्रो. पंजाब सिंह, भोजपुरी फिल्म अभिनेता कुणाल सिंह, पूर्व शिक्षा मंत्री सुरजीत सिंह डंग सहित तमाम साहित्यकार, शिक्षाविद, संस्कृतिकर्मी व अधिकारीगण मौजूद रहे। (समाचार प्रस्तुति : कृष्ण कुमार यादव) 




डॉ. अशोक कुमार गुप्त ‘अशोक’ व डॉ. हरीलाल ‘मिलन’ सम्मानित

महात्मा फूले टैलेन्ट अकादमी, नागपुर के उपाधि सम्मान समारोह में कानपुर के साहित्यकारद्वय डॉ. अशोक कुमार गुप्त ‘अशोक’ व डॉ0 हरीलाल ‘मिलन’ को उनकी सामाजिक, साहित्यिक, भाषा सेवा आदि हेतु ‘साहिर लुधियानवी नेशनल अवार्ड’ प्रदान किया गया है। श्रीमती राधिका ताई कॉलेज ऑफ इंजीनियरिंग के भव्य समारोह में विगत 07 सितंबर को देश भर से आये विद्वतजनों के मध्य यह समारोह सम्पन्न हुआ। समारोह में नागपुर उच्च न्यायालय के माननीय न्यायाधीश श्री किशोर राही, संस्था के प्रमुख चन्द्रभान भोयर, सांसद सुखलाल कुशवाहा, डॉ. देवी नागरानी, सुनील सरदार, पी.एस. चरपे, डॉ. भगीरथ कौशिक, ए.एस.वधान, सुधाकर गायधनी आदि मंचासीन अतिथि थे। (समाचार प्रस्तुति :  सतीश गुप्ता, संपा. अनन्तिम, कानपुर)




‘मोर पंख’ पर समीक्षा संगोष्ठी आयोजित




वक़्त की आँखों मे आँखें डाल आज का लघुकथा लेखक रचनात्मक स्टार पर बेहद सक्रिय है और चौकन्ना भी। जहरीली हवा के विरुद्ध उसकी लेखनी चोर दरवाजे से कोई समझौता नहीं करती और सफेद कोश मुखौटों को नोचकर समाज के सामने बेनकाब कर देती है। ये विचार हैं वरिष्ठ लघुकथा लेखक श्री वेद हिमांशु के जो उन्होने रंजन कलश संस्था द्वारा प्रकाशित लघुकथा संग्रह मोर पंख की समीक्षा संगोष्ठी में मुख्य अतिथि पद से व्यक्त किये। शासकीय देवी अहिल्या पुस्तकालय में आयोजित इस संगोष्ठी की अध्यक्षता करते हुए श्रीमती रंजना फतेपुरकर ने कहा की आज की व्यस्ततम ज़िंदगी से जुड़ी लघुकथा विधा अपनी लघुता के कारण अपेक्षाक्रत ज्यादा प्रभावकारी सिद्ध हुई है जिसे संकलन की रचना में देखा जा सकता है। श्री संतोष मिश्रा राज ने इस अवसर पर कहा की लघुकथा में विषय चयन से प्रस्तुति तक की यात्रा चुनौतीपूर्ण है जिसे ‘मोर पंख’ के सभी लेखकों ने स्वीकार किया है। इस अवसर पर शारदा मिश्रा, महेन्द्र सांघी, सुधा दाते, रोशनी वर्मा, मनीषा शर्मा, अमोघ अग्रवाल, आदि रचनाकारों ने रचनापाठ किया। (समाचार प्रस्तुति :  संतोष शर्मा) 




डॉ. अशोक गुप्त की कृति ‘आस्था के बोल’ का लोकार्पण



विगत 03 अगस्त को कानपुर में डॉ.अशोक कुमार गुप्त ‘अशोक’ के स्तुति गीत संग्रह ‘आस्था के बोल’ का लोकार्पण शबेत्सव सभागार में सम्पन्न हुआ।  समारोह में श्री अवध बिहारी श्रीवास्तव (मुक्ष्य अतिथि), डॉ. सूर्य प्रसाद शुक्ल (मुख्य वक्ता), डॉ. रामकृष्ण शर्मा (विशिष्ट वक्ता) व डॉ. हरीलाल ‘मिलन’ मंचासीन थे। इस अवसर पर डॉ. हरीलाल ‘मिलन’ को सम्मानित भी किया गया। उन्हें श्री सतीश गुप्ता, नीलरम्बर कौशिक एवं पंकज दीक्षित ने सम्मानित किया। इस अवसर पर सर्वश्री चक्रधर शुक्ल, उॉ. विनोद त्रिपाठी, गुरुवेन्द्र तिवार आदि अनेक गणमान्य व्यक्ति उपस्थित थे। (समाचार प्रस्तुति : डॉ. अशोक कुमार गुप्त ‘अशोक’, संयोजक : बटोही, कानपुर)




डॉ. सुनील कुमार परीट जी को “काव्य कुमुद सम्मान” 


ग्वालियर साहित्य कला परिषद, ग्वालियर, म.प्र. के संस्थापक एवं अध्यक्ष श्री रमेश कटारिया ’पारस’ जी और समारोह के मुख्य अतिथि प्रख्यात साहित्यकार श्री राम अवतार जी ने अहिन्दी प्रदेश कर्नाटक के प्रसिध्द हिन्दी साहित्यकार डॉ. सुनील कुमार परीट जी को उनके संपूर्ण व्यक्तित्व, कृतित्व एवं साहित्यिक योगदान के लिए 30 सितंबर 2014 के शुभ दिन के अवसर पर “काव्य कुमुद सम्मान” से सम्मानित किया। अंगवस्त्र ओढकर स्वर्ण पदक, 4 किताबें, सम्मान-पत्र और नगद राशि प्रदान करके डॉ. परीट जी को भव्य समारोह में सम्मानित किया गया। संस्था ने उनके उज्ज्वल भविष्य के लिए कामना की। डॉ. परीट जी दस साल से कर्नटक में राष्ट्रभाषा हिन्दी का प्रचार-प्रसार कर रहे हैं। (समाचार प्रस्तुति : सुनील कुमार परीट)

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