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शुक्रवार, 29 अगस्त 2014

अविराम विस्तारित

अविराम  ब्लॉग संकलन :  वर्ष  : 3,   अंक  : 11-12  :  जुलाई-अगस्त  2014

।। जनक छंद ।। 

सामग्री : पं. ज्वालाप्रसाद शांडिल्य ‘दिव्य’ के बारह जनक छंद। 


पं. ज्वालाप्रसाद शांडिल्य ‘दिव्य’



{पं. ज्वालाप्रसाद शांडिल्य ‘दिव्य’ का जनक छंद संग्रह ‘मन के नयन हजार हैं’ हाल ही में प्रकाशित हुआ है। प्रस्तुत हैं इस संग्रह से ‘दिव्य’ जी के कुछ जनक छंद।}

बारह जनक छन्द

01.
स्वाभिमान को खो नहीं
चाहत पूरी हो नहीं
अंधे आगे रो नहीं
02.
ग्रहण किये परिवेश को 
देश और परदेश में
भूलो मत निज देश को
03.
आभायुक्त विशेष है
जन्मभूमि सुखधाम की
भारत देश विशेष है
04.
होवे शमन कलेश का
चलन चलें अवधेश का
मान बढ़े तब देश का
05.
प्रभा उगे ऊष्मा लिये
ओज तेज प्रतिभा बढ़े
बढ़े चलें गरिमा लिये
06.
नित्य दगा दे आदमी
ठगा-ठगा है आदमी
खूब भला है आदमी
07.
लगे शक्ल से आदमी
चाल-चलन से भेड़िया
छाया चित्र : उमेश महादोषी 
दीख रहा है आदमी
08.
घात-घात पर घात हो
गम ढोते हैं रात-दिन
पल-पल दृग बरसात हो
09.
दर्द लिये हर भोर है
फिर भी जीवित आदमी
बेचैनी हर ओर है
10.
साहस और उमंग हो
उद्धत हो जीवन कला
खुशहाली का रंग हो
11.
अधिकारों की बाढ़ है
कमर तोड़ती देश की
स्वारथ बुद्धि प्रगाढ़ है
12.
मनके नयन हजार हैं
राजा-रंक-फकीर तक
इसके सभी शिकार हैं

  • 251/1, दयानन्द नगरी, ज्वालापुर, हरिद्वार-249407 (उत्तराखण्ड) / मोबाइल :  09927614628

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