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रविवार, 30 मार्च 2014

गतिविधियाँ

अविराम  ब्लॉग संकलन :  वर्ष  : 3,   अंक  : 07-08,  मार्च-अप्रैल 2014 


{आवश्यक नोट-  कृपया संमाचार/गतिविधियों की रिपोर्ट कृति देव 010 या यूनीकोड फोन्ट में टाइप करके वर्ड या पेजमेकर फाइल में या फिर मेल बाक्स में पेस्ट करके ही भेजें; स्केन करके नहीं। केवल फोटो ही स्केन करके भेजें। स्केन रूप में टेक्स्ट सामग्री/समाचार/ रिपोर्ट को स्वीकार करना संभव नहीं है। ऐसी सामग्री को हमारे स्तर पर टाइप करने की व्यवस्था संभव नहीं है। फोटो भेजने से पूर्व उन्हें इस तरह संपादित कर लें कि उनका लोड 02 एम.बी. से अधिक न रहे।}



विश्व पुस्तक मेले में ‘पड़ाव और पड़ताल’ का विमोचन

     
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फेस बुक - लघुकथा साहित्य 
इस बार दिल्ली में आयोजित विश्व पुस्तक मेले में दिशा प्रकाशन के स्टाल पर लघुकथा के अनूठे संकलन ‘पड़ाव और पड़ताल’ के दो खण्डों का विमोचन किया गया। ‘पड़ाव और पड़ताल’ दिशा प्रकाशन के संचालक/निदेशक एवं सुप्रसिद्ध कथाकार श्री मधुदीप द्वारा लघुकथा पर आरम्भ की गई एक अनूठी संकलन श्रंखला है। संकलन के प्रत्येक खण्ड में छः-छः प्रतिनिधि लघुकथाकारों की 11-11 लघुकथाएं संकलित की जा रही हैं। प्रत्येक लघुकथाकार की लघुकथाओं पर एक-एक

समीक्षक की समालोचनात्मक समीक्षा तथा अन्त में किसी अन्य समीक्षक द्वारा समस्त
फ़ोटो सौजन्य :
फेस बुक - लघुकथा साहित्य
66 लघुकथाओं पर आधारित एक समग्र समालोचनत्मक आलेख शामिल किया गया है। इस पुस्तक के फिलहाल दो खण्ड प्रकाशित हुए हैं तथा कई अन्य खण्ड शीघ्र प्रकाशनाधीन हैं। पहले खण्ड का संपादन स्वयं श्री मधुदीप जी ने किया है। जबकि दूसरे खण्ड का संपादन सुप्रसिद्ध लघुकथाकार एवं समालोचक डॉ. बलराम अग्रवाल ने किया है। विमोचन समारोह में दोनों खण्डों के संपादकों के साथ अनेक साहित्यकार एवं गणमान्य व्यक्ति उपस्थित रहे।
{समाचार प्रस्तुति : उमेश महादोषी}


संसद भवन में आचार्य तुलसी जन्मशताब्दी समारोह 

पर चर्चा

अल्पसंख्यक बहुसंख्यक की राजनीति घातक : मुनि राकेशकुमार

नई दिल्ली, 18 फरवरी 2014। संसद में एक ओर तेलंगाना मुद्दे पर गर्मागर्म बहस छिड़ी हुई थी तो दूसरी ओर भारतीय संत परम्परा के शीर्षस्थ संतपुरुष आचार्य तुलसी के अवदानों की चर्चा को लेकर लोकतंत्र को एक नई दिशा देने के प्रयास किये जा रहे थे। संसद भवन में भाजपा के कार्यालय में करीब पन्द्रह सांसदों की उपस्थिति में आचार्य तुलसी जन्मशताब्दी समारोह पर चर्चा को लेकर आचार्य श्री महाश्रमण के शिष्य मुनिश्री राकेशकुमारजी की सन्निधि में देश के सम्मुख उपस्थित समस्याओं को लेकर सकारात्मक चर्चा का वातावरण बना। 
     लोकसभा में विपक्षी नेता श्रीमती सुषमा स्वराज ने कहा कि वर्तमान में देश जिन
जटिल परिस्थितियों से जूझ रहा है, इन हालातों में शांति एवं अहिंसा जैसे मूल्यों की स्थापना जरूरी है। उन्नत व्यवहार से जीवन को बदला जा सकता है और इसके लिए आचार्य श्री तुलसी द्वारा प्रारंभ किया गया अणुव्रत आंदोलन और उसकी आचार-संहिता जीवन-निर्माण का सशक्त माध्यम है।
राज्यसभा में विपक्ष के उपनेता श्री रविशंकर प्रसाद ने कहा कि अणुव्रत आंदोलन के द्वारा लोकतंत्र को सशक्त करने की दृष्टि से किए जा रहे इन प्रयत्नों पर प्रसन्नता व्यक्त करते हुए उन्होंने आगे कहा कि आचार्य श्री महाश्रमण आध्यात्मिक शक्ति के साथ संपूर्ण राश्ट्र में शांति व भाईचारे का संदेश फैला रहे हैं। मौजूदा माहौल में अणुव्रत आंदोलन समाज में शांति एवं सौहार्द स्थापित करने के साथ लोकतांत्रिक मूल्यों को जन-जन में स्थापित करने का सशक्त माध्यम है। श्री प्रसाद ने संसद में नई सरकार के गठन के बाद यदि भाजपा की सरकार बनती है तो आचार्य तुलसी जन्म शताब्दी का एक भव्य आयोजन करने का आश्वासन दिया। 
   
 मुनि राकेशकुमार ने अपने विशेष उद्बोधन में अणुव्रत आंदोलन की संपूर्ण जानकारी प्रदत्त करते हुए कहा कि प्रत्येक व्यक्ति में दायित्व और कर्तव्यबोध जागे, तभी लोकतंत्र को सशक्त किया जा सकता है। सांप्रदायिक हिंसा, कटुता एवं नफरत के जटिल माहौल में अणुव्रत आंदोलन के माध्यम से शांति एवं अमन-चैन कायम करने के लिए प्रयास हो रहे हैं। यही वक्त है जब राष्ट्रीय एकता को संगठित किया जाना जरूरी है। हाल ही में केन्द्र सरकार द्वारा जैन समाज को अल्पसंख्यक का दर्जा दिये जाने के मुद्दे पर अपने विचार व्यक्त करते हुए मुनि राकेशकुमारजी ने कहा कि अल्पसंख्यक और बहुसंख्यक की राजनीति देश के लिए घातक है। राष्ट्रीयता के आधार पर वह हर व्यक्ति हिन्दू है जिसे हिन्दुस्तान की नागरिकता प्राप्त है और जिसकी मातृभूमि हिन्दुस्तान है। जाति व धर्म के आधार पर इंसान को बांटने की नहीं जोड़ने की जरूरत है। ऐसे ही विचारों को आचार्य तुलसी ने बल दिया था। मुनिश्री सुधाकरकुमार ने आचार्य तुलसी के द्वारा साम्प्रदायिक सौहार्द, राष्ट्रीय एकता एवं समतामूलक समाज की स्थापना के लिए किये गये प्रयत्नों की चर्चा करते हुए कहा कि पंजाब समस्या हो या संसदीय अवरोध, भाषा का विवाद हो या साम्प्रदायिक झगड़े हर मोर्चे पर उन्होंने देश को संगठित करने का प्रयत्न किया। प्रारंभ में मुनिश्री दीपकुमार ने अणुव्रत गीत का गायन किया। 
    इस अवसर पर श्री अर्जुन मेघवाल, श्री पीयूष गोयल, श्री दिलीप गांधी, श्री अविनाश खन्ना, श्रीमती विमला कश्यप, श्री पाण्डेया जी, श्री जयप्रकाश नारायण सिंह, श्री वीरेन्द्र कश्यप, ज्योति धुर्वे, श्री संजय पासवान, पूर्व सांसद श्री संघप्रिय गौतम, पूर्व सांसद डॉ॰ महेश शर्मा, पूर्व सांसद श्री प्रदीप गांधी, अनुसेया आदि अनेक सांसद उपस्थित थे। समारोह में अणुव्रत के शीर्षस्थ कार्यकर्ता श्री मांगीलाल सेठिया, श्री पदमचंद जैन, तेरापंथी सभा के महामंत्री श्री सुखराज सेठिया, अखिल भारतीय अणुव्रत न्यास के प्रधान ट्रस्टी श्री संपत नाहटा, अणुव्रत लेखक मंच के संयोजक श्री ललित गर्ग, श्री रमेश कांडपाल, श्री महेन्द्र मेहता, भाजपा कार्यालय के सचिव श्री वी॰ एस॰ नाथन आदि ने भी अपने विचार रखे। (समाचार प्रस्तुति: ललित गर्ग, मीडिया प्रभारी: जैन श्वेताम्बर तेरापंथी सभा, अणुव्रत भवन, 210,  दीनदयाल उपाध्याय मार्ग, नई दिल्ली-110002, मो॰ 98110511330) 


व्यंग्यकार समाज की अव्यवस्था पर ध्यान दिलाता है 

 डॉ. सतीश दुबे

      श्री श्रीसाहित्य सभा द्वारा आयोजित समारोह में सुप्रसिद्ध व्यंग्यकार, लघुकथाकार मालवी बोली के श्री रमेशचन्द्र पंडित की दो पुस्तकों का विमोचन सम्पन्न हुआ। डॉ. शिव चौरसिया की अध्यक्षता में संपन्न कार्यक्रम में मुख्य अतिथि श्री सत्यनारायण सत्तन तथा विशिष्ट अतिथि व चर्चाकार के रूप में डॉ. सतीश दुबे, सूर्यकांत नागर, अनिल त्रिवेदी उपस्थित थे। पार्श्वगायक श्री शिवकुमार पाठक द्वारा संगीतमय सरस्वती वंदना से आरम्भ इस आयोजन का संचालन कवि चकोर चतुर्वेदी ने किया। इस अवसर पर रमेश चन्द्र पंडित ने अपने वक्तव्य के साथ मालवी संग्रह ‘पईसा को झाड़’ से एक लघुकथा तथा डॉ. दीपा व्यास ने व्यंग्य संग्रह ‘सवाल नाक का’ से एक व्यंग्य का पाठ किया। सुप्रसिद्ध साहित्यकार डॉ. सतीश दुबे ने व्यंग्य एवं व्यंग्यकार की भूमिका पर प्रकाश डालते हुए अपने वक्तव्य में कहा- ‘‘व्यंग्यकार समाज की अव्यवस्था पर ध्यान दिलाता है।’’
    गौतम आश्रम, सुदामा नगर, इन्दौर में आयोजित इस समारोह में संस्था के अनेक पदाधिकारियों अशोक कानूनगो, जगदीश पचौरी, जयश्री व्यास, वीणा जोशी, उयाा दुबे आदि ने अतिथियों का ससम्मान स्वागत किया। हिन्दी परिवार के पदाधिकारियों तथा नगर के कई साहित्यकारों सहित जावरा के श्री सतीश श्रोत्रिय ने श्री रमेश चन्द्र पंडित का स्वागत किया।  अन्त में श्री धर्मेन्द्र पंडित ने सभी का आभार च्यक्त किया। (समाचार प्रस्तुति: निर्लेश तिवारी, प्रचार मंत्री, श्री श्रीसाहित्य सभा, इन्दौर)



सब को साथ लेकर चलने से ही हिंदी का विकास होगा  

: ए. के. माथुर

     “हिंदी के अध्ययन के लिए अपने बच्चों का प्रोत्साहित किया जाना चाहिए और हिंदी के क्षेत्र में जो लोग काम करते हैं उन को हिंदी के प्रचार-प्रसार के लिए आगे आना चाहिए। हिंदी का विकास तभी संभव है जब हम सब को एक साथ लेकर आगे बढ़ें”, केन्द्रीय हिंदी निदेशालय, उच्चतर शिक्षा विभाग, मानव संसाधन विकास मंत्रालय, भारत सरकार, नई दिल्ली एवं पूर्वाेत्तर हिंदी अकादमी, शिलांग के संयुक्त तत्वावधान में गत दिनांक 8 मार्च को स्थानीय केन्द्रीय हिंदी संस्थान के प्रेक्षा गृह में “मेघालय में हिंदी-अध्ययन एवं अध्यापन” विषय पर आयोजित एक दिवसीय हिंदी संगोष्ठी में अपने अध्यक्षीय भाषण में श्री ए. के. माथुर, भारतीय पुलिस सेवा, निदेशक,
उत्तर-पूर्वी पुलिस अकादमी रिभोई ने कहा कि यदि हिंदी को इस क्षेत्र में लाना है तो हिंदी का प्रयोग अधिक से अधिक करना होगा। श्री माथुर ने कहा कि जिस प्रकार हम अंग्रेजी के लिए कठोर हैं उसी प्रकार हमें हिंदी के लिए भी कठोर बनना होगा। हमें त्रुटिपूर्ण भाषा का प्रयोग नहीं करना चाहिए। जिस तरह एक आदर्श पुरुष या महिला का महत्व है उसी तरह आदर्श हिंदी का भी महत्व है। हमें हिंदी के शब्दकोश को और आसान बनाने की आवश्यकता है। श्री माथुर ने सुझाव दिया कि पूर्वाेत्तर में कार्यरत हिंदी के शिक्षकों को उनके कार्य के अनुसार सम्मानित किया जाना चाहिए। हिंदी शिक्षकों का एक संगठन हो और उसके द्वारा शिक्षकों का सम्मान हो ताकि उनका उत्साह बढ़े। संगोष्ठियों के माध्यम से ज्ञान चर्चा हो और खेल खेल में हिंदी को सिखाया जाये। हिंदी की कठिनाइयों को दूर करने का प्रयास किया जाए। आवश्यकता इस बात की है कि इस क्षेत्र के लोगों को हिंदी की विशेषता बताई जाए और स्थानीय साहित्य का अनुवाद हिंदी में किया जाए ताकि स्थानीय जनता मुख्यधारा से जुड़ सके।
साहित्य के माध्यम से ही यहाँ के लोगों को देश के अन्य क्षेत्रों से अवगत कराया जा सकता है। लोगों को एक रुचिकर माध्यम देना होगा और हमारे लिए कोई रास्ता नहीं निकालेगा, रास्ता हमें स्वयं बनाना है।
    इस संगोष्ठी की मुख्य अतिथि श्रीमती पुष्पारानी वर्मा, उपायुक्त नवोदय विद्यालय समिति, शिलांग संभाग ने इस अवसर पर अपना उद्गार व्यक्त करते हुए कहा कि हिंदी उत्तर और दक्षिण, पूरब और पश्चिम को जोड़ने वाली भाषा है। हिंदी के माध्यम से देश को और मजबूत बनाया जा सकता है। एक राष्ट्रभाषा से हमारी संस्कृति एक होगी और हमारा राष्ट्र दृढ़ होगा। हिंदी को राष्ट्रभाषा बनाने में प्रांतीय भाषाओं की हानि नहीं, वरन् लाभ है। प्रत्येक भाषा की अपनी संस्कृति होती है, जिसके विस्तार के साथ उस भाषा का भी विस्तार संभव है। नवोदय विद्यालय समिति के विभिन्न विद्यालयों में हिंदी के विस्तार की चर्चा करते हुए श्रीमती वर्मा ने कहा कि हम हिंदी के प्रचार-प्रसार के लिए कृतसंकल्प हैं। हमारा यह दायित्व है कि हम हिंदी का विस्तार करें।
    मुख्य वक्ता डा. अवनीन्द्र कुमार सिंह ने अपने आलेख के माध्यम से बताया कि
मेघालय में हिंदी का अध्ययन एवं अध्यापन राज्य के गठन के पश्चात् से ही किया जा रहा। शिक्षक और शिक्षार्थी की स्थिति वैसे ही है जैसे एक लंगड़े और अंधे की होती है और बीच में सयानी सरकार है। जिसका अर्थ है शिक्षा जैसी चल रही वैसे चलने दो। मेघालय में हिंदी पढ़ाए या संपर्क भाषा के रूप में हिंदी पढ़ाए, व्याकरण पढ़ाए या व्यवहारिक व्याकरण पढ़ाए जिसका प्रयोग दैनिक व संपर्क भाषा के रूप में कर सके ताकि छात्र संदर्भगत नियम समझकर हिंदी भाषा का शुद्ध एवं परिमार्जित भाषा अपना सके।
     श्री जानमोहम्मद अंसारी ने अपने आलेख में कहा कि पूर्वाेत्तर भारत में 86 जवाहर नवोदय विद्यालयों में छात्रों को शिक्षा दी जा रही है। भारत के इस भू-भाग में हिंदी द्वितीय भाषा पर अनिवार्य भाषा के रूप में पढ़ाई जाती है। हिंदी के शिक्षकों की स्थिति पूर्वाेत्तर में दयनीय है, इस कारण भी हिंदी भाषा विकास नहीं हो पा रहा है। श्री जानमोहम्मद ने अपना अनुभव बताते हुए कहा कि हिंदी भाषा को हिंदू धर्म से जोड़कर देखा जाता है। अभिभावक यह समझते हैं कि हिंदी पढ़ने से उनका बच्चा हिंदी बन जाएगा। इस भू-भाग के बच्चों में यह भावना घर कर गयी है कि हिंदी पढ़कर वे जीविकोपार्जन नहीं कर सकते हैं। हिंदी भाषा के माध्यम से सफलता की सीढ़ियाँ नहीं चढ़ी जा सकती है। श्री अंसारी ने अपने आलेख में कहा कि यहाँ हिंदीतर भाषी विद्यार्थियों में उच्चारण की कमी पायी जाती है। हिंदी भाषा की उपयोगिता को दर्शाकर इस क्षेत्र में एक संपर्क भाषा के रूप में हिंदी का
विकास किया जा सकता है।
     डा. अनीता पंडा ने अपने आलेख में कहा कि भाषा की शुद्धता पूर्वाेत्तर राज्यों में हिंदी पठन-पाठन की सबसे बड़ी समस्या है। इसमें व्याकरण अपनी अहम् भूमिका निभाता है। इसके लिए कठोर व्याकरणिक नियमों को न थोपकर रोचक उदाहरणों द्वारा समझाना चाहिए। इसके लिए प्रशिक्षित हिंदी शिक्षकों की आवश्यकता से इंकार नहीं किया जा सकता है। पूर्वाेत्तर भारत में हिंदी शिक्षण एवं हिंदी शिक्षकों के प्रति उदासीनता इसके प्रसार में एक बड़ी बाधक है, खासतौर पर मेघालय में। इसके बावजूद हिंदी अध्ययन में छात्रों की रुचि बढ़ी है। राज्य सरकारों का पाठ्यक्रम में हिंदी विषय सम्मिलित करना सुखद अनुभूति है। संपर्क भाषा के रूप में भी यहाँ हिंदी अपने पाँव तेजी से पसार रही है। डा. पंडा ने सुझाव दिया कि पूर्वाेत्तर राज्यों में हिंदी शिक्षम को सुगम तथा रुचिकर बनाने के लिए हम दार दृष्टिकोण अपनाएं।
     पावरग्रिड कार्पाेरेशन लिमिटेड के उप प्रबंधक श्री उत्पल शर्मा ने अपना विचार व्यक्त करते हुए कहा कि हिंदी भाषा को अत्यंत रुचिकर बनाना चाहिए। उनहोंने माना कि पूर्वाेत्तर भारत में मीडिया के माध्यम से हिंदी का खूब प्रचार हुआ है और आगे भी होगा। अपने कार्यालय में हिंदी की स्थिति की चर्चा करते हुए कहा कि उनके कार्यालय में सभी
कर्मचारी एवं अधिकारी हिंदी में ही अपना हस्ताक्षर करते हैं और फाइल वर्क भी हिंदी में अधिक से अधिक किया जाता है। व्याकरण के कारण हो रही अशुद्धि का जिक्र करते हुए श्री शर्मा ने कहा कि व्याकरण पर थोड़ा ध्यान कम दिया जाना चाहिए क्योंकि हम लोग हिंदीतर भाषी हैं और हमें व्याकरण की बारीकियों को समझने में मुश्किल होती है। कर्ता के चिह्नों का प्रयोग भी हमारे लिए कठिन लगता है।
     डा. अरुणा कुमारी उपाध्याय ने कहा कि पूर्वाेत्तर भारत के हिंदी के पाठ्यक्रमों में स्थानीय विषयों को शामिल करना आवश्यक है जिससे छात्रों की रुचि बढ़े। यहाँ की लोककथाओं, कहानियों, निबंधों आदि को हिंदी के पाठ्यपुस्तकों में स्थान दिये जाने से विद्यार्थी मन लगाकर अध्ययन करेगा। हिंदी की शिक्षा अनिवार्य किये जाने पर बल देते हुए डा. उपाध्याय ने कहा कि मैट्रिक तक हिंदी को अनिवार्य विषय के रूप में अध्ययन की सुविधा दी जानी चाहिए। डा. अरुणा ने हिंदी के शिक्षकों की स्थिति पर भी चर्चा की और उन्हें निराश न होकर कार्य करने के लिए आग्रह किया।    
     श्रीमती शिलबी पासाह खासी भाषी विद्यार्थियों की कठिनाइयों की चर्चा करते हुए कहा कि इन कठिनाइयों के बावजूद खासे छात्र हिंदी सीख रहे हैं और रुचि भी ले रहे हैं। वे अब जान गये हैं कि हिंदी के बिना उनका काम नहीं चलेगा। मेघालय से बाहर जाने पर हिंदी में ही बात करनी पड़ती है। मेघालय में हिंदी गाने काफी लोकप्रिय हैं। मोबाइल और नेट के जरिए बच्चे हिंदी सीखने में सफल हो रहे हैं। हमें निराश होने की कतई आवश्यकता नहीं है। हिंदी का विकास पूर्वाेत्तर में हो रहा और आगे भी होगा।
    इस अवसर पर श्री राम बुझावन सिंह, सूर्य प्रसाद अधिकारी, दीपांकर, गीता लिम्बू, रूवी सिन्हा, दीक्षा जैन, दीपा शर्मा, विशाल केसी, आशा पुरकायस्थ, रफीक अली. डा. शिप्रा बासु, शोभा गुप्ता, नीता शर्मा, पत्रकार श्री सतीस चन्द्र झा कुमार, सपन भोआल आदि गणमान्य व्यक्ति उपस्थित थे। इस संगोष्ठी का शुभारंभ पूर्वाेत्तर हिंदी अकादमी के अध्यक्ष श्री बिमल बजाज के स्वागत भाषण से हुआ। अपने स्वागत भाषण में श्री बजाज ने अकादमी का परिचय दिया और इसकी गतिविधियों पर प्रकाश डालते हुए कहा कि अकादमी सिर्फ मेघालय में ही नहीं बल्कि मिजोरम, सिक्किम, असम, नागालैण्ड आदि राज्यों में भी हिंदी का प्रचार प्रसार करने के लिए अपने सदस्यों को लेकर जा रही है। अन्य राज्यों में भी अकादमी के प्रयास जारी हैं। इस संगोष्ठी का संचालन डा. अरुणा कुमारी उपाध्याय और अकादमी के सचिव डा. अकेलाभाइ ने किया। डा. अकेलाभाइ ने अपने धन्यवाद ज्ञापन में बताया कि आज की इस संगोष्ठी के अध्यक्ष श्री ए. के. माथुर जी अगले महीने अवकाश प्राप्त कर रहें हैं। इन्होंने अकादमी का पूरा-पूरा सहयोग किया है। इनकी विदाई से अकादमी के सदस्य चिंतित हैं कि आगे का मार्गदर्शक कौन होगा। श्री माथुर जी अकादमी द्वारा आयोजित लगभग प्रत्येक कार्यक्रम में उपस्थित रहा करते थे। अकादमी के लिए श्री माथुर का योगदान एक मार्गदर्शक के रूप नहीं भुलाया जा सकता है। {समाचार प्रस्तुति: डा. अकेलाभाइ, मानद सचिव, पूर्वोत्तर हिन्दी अकादमी, पो. रिन्झा, शिलांग, मेघालय/मोबाइल: 09774286215} 


‘रंग कबीर में बिखरे फागुनी भक्ति के रंग’

इन्दौर। कबीर जन विकास समूह द्वारा आशीष नगर (बंगाली चौराहा) में रंग कबीर शीर्षक के अंतर्गत भक्ति के फागुनी गीतों और काव्य की सुमधुर प्रस्तुति 21 मार्च को की गयी। वरिष्ठ कवि वेद हिमांशु और विजय विश्वकर्मा के विशेष आतिथ्य में संपन्न गीत संगीत और काव्य प्रस्तुतियों के इस अभिनव आयोजन में तारा सिंह डॉडवे मंडली द्वारा प्रस्तुत गीत मथुरा मंदिर में मीरा एकलि खड़ी मोहन आवो तो सरी .... एवं ‘नथ म्हारी दईदो हो सांवरिया म्हारो चन्द्रा बदन मुख सुखो’ ने श्रोताओं को जहां भक्ति रस में सराबोर कर दिया वहीं, उनके फागण आयो रे गीत की ऐसी प्रस्तुति रही की उनकी मंडली का गायन श्रोताओं के समवेत गायन में तब्दील हो गया। 
    सुश्री अंजना सक्सेना के कबीर की छाप वाले गीत ‘झीनी रे चदरिया’ ने जहां श्रोताओं को जहां स्वर माधुर्य से भिगोया वहीं जीवन दर्शन की सूक्ष्म गहराइयों में पहुंचा दिया। गीत संगीत के साथ ही आयोजन में काव्य का अभिनव रंग भी खूब बरसा जिसके सूत्रधार अतिथि कवि वेद हिमांशु, विजय विशकर्मा और विकास गौरव थे। कवियों की इस त्रयी द्वारा प्रस्तुत रचनाओं ने भी आयोजन में खूब समा बांधा। इस अवसर पर कथाकार सत्यनारायण पटेल तथा अजय टिपाणिया भी उपस्थित थे।
    कार्यक्रम का संचालन श्री सुरेश पटेल ने तथा आभार प्रदर्शन श्री छोटेलाल भारती ने किया। (समाचार प्रस्तुति: वेद हिमांशु, द्वारा कबीर जन विकास समूह फोन 0731-3951691/94245-86658)


शिलांग (मेघालय) में नागरी लिपि संगोष्ठी आयोजित

     नागरी लिपि परिषद्, नई दिल्ली एवं पूर्वाेत्तर हिंदी अकादमी, शिलांग के संयुक्त तत्वावधान में स्थानीय केन्द्रीय हिंदी संस्थान के सेमिनार कक्ष में दिनांक 7 मार्च 2014 को एक दिवसीय नागरी लिपि संगोष्ठी का आयोजन वरिष्ठ पत्रकार शिलांग दर्पण के कार्यकारी संपादक श्री सतीश चन्द्र झा कुमार की अध्यक्षता में किया गया। मुख्य अतिथि एवं मेघालय हिंदी प्रचार परिषद् के सचिव श्री सकलदीप राय ने नागरी लिपि की वैज्ञानिकता का विस्तृत परिचय देते हुए कहा कि देश की एकता के लिए नागरी लिपि का प्रयोग प्रत्येक राष्ट्रभाषा के लिए करना चाहिए। अपने अध्यक्षीय भाषण में श्री सतीशचन्द्र झा कुमार ने नागरी लिपि की महत्ता पर प्रकाश डालते हुए इसकी उपयोगिता के विषय में चर्चा की। उन्होंने कहा कि संसार की सभी लिपियों में नागरी लिपि सर्वश्रेष्ठ लिपि है। इसके प्रचार से देश की एकता मजबूत होगी और साहित्य का देशव्यापी विकास संभव होगा।
   अपने विचार प्रकट करते हुए प्रवक्ता केन्द्रीय हिंदी संस्थान, डा. सुनिल कुमार ने कहा कि नागरी लिपि सबसे सक्षम लिपि है। दूसरी लिपियाँ नागरी लिपि की तरह समर्थ नहीं हैं। खासी भाषा के लिए नागरी लिपि बिल्कुल उपयुक्त लिपि है। हमें विश्वास है कि धीरे-धीरे इस लिपि को पूरे पूर्वाेत्तर भारत में अपनाया जाएगा। गोरखा सेकण्डरी स्कूल की शिक्षिका डा. अरुणा कुमारी उपाध्याय ने अपना विचार रखते हुए कहा कि भारत की सभी भाषाओं को यदि नागरी लिपि में भी लिखा जाए तो राष्ट्र की एकता और मजबूत हो सकती है। यहां की प्रचलित बोलियों के लिए भी यह लिपि उपयुक्त है। आवश्यकता है प्रयास करने और इसका उपयोग बढ़ाने की। इस लिपि को सीखने के लिए छात्र आगे आये तो अवश्य सीख सकते हैं।
    सेंट ऑन्थोनी कॉलेज की प्रवक्ता डा. फिल्मिका मारबनियांग अपना विचार व्यक्त करते हुए कहा कि खासी भाषा के लिए नागरी लिपि बिल्कुल उपयुक्त है लेकिन चूँकि खाफी पहले से रोमन में यह भाषा लिखी जा रही है इसलिए इस भाषा के लिए नागरी लिपि को अपनाना बहुत मुश्किल है। परंतु जो ध्वनियाँ खासी में प्रयुक्त होती हैं वे सभी ध्वनियाँ नागरी लिपि में मौजूद हैं। हम नागरी लिपि में खासी भाषा को लिखने की शुरुआत कर सकते हैं लेकिन कठिनाई यह है कि जो वरिष्ठ लोग हैं वे नागरी लिपि नहीं जानते हैं। आज की पीढ़ी के लिए यह लिपि आसान हो सकती है। इस पर विस्तृत चर्चा की आवश्यकता है।
     आर्मी स्कूल के वरिष्ठ शिक्षक डा. अवनिन्द्र कुमार सिंह ने अपने आलेख के माध्यम से बताया कि नागरी लिपि कोई सामान्य लिपि नहीं है। इस लिपि की अपनी एक सांस्कृतिक विरासत है। दुनिया का कोई भी देश देवनागरी लिपि के समकक्ष बैठने की जुगत नहीं कर सकता है। भारत के संविधान की आत्मा ने इसे राजलिपि का सर्वाेच्च स्थान प्रदान किया है। देश की राष्ट्रीय भाषा के साथ इसका प्रत्यक्ष जुड़ाव है। जिस तरह से हिंदी हमारे भारत गणराज्य की धड़कन बनी उसी तरह से यह लिपि भी हमारी धड़कन बनी है। देवनागरी लिपि बारतीय भाषाओं की आदर्श लिपि है। इसकी वैज्ञानिकता स्वयंसिद्ध है। यह कलात्मक है, भाषाविदों द्वारा इसकी वैज्ञानिकता की सूक्ष्म विवेचना की जाती है। अपने आलेख को समाप्त करते हुए डा. सिंह ने कहा कि भाषा और देवनागरी लिपि की प्रकृति संयोगात्मक है, वियोगात्मक नहीं। कोई भी भाषा तभी अच्छी लगती है जब उसकी कोई लिपि हो और विचार तब अच्छे लगते हैं जब कोई लिपि व्यक्त करने में सक्षम हो।  
    जवाहर नवोदय विद्यालय के हिंदी शिक्षक श्रा जानमोहम्मद अंसारी ने अपने आलेख के माध्यम से कहा कि भारत के इस भूभाग में जितनी भाषाएं एवं बोलियां पाई जाती हैं, उन सभी को यदि देवनागरी लिपि में लिखा जाए तो विनोबा भावे की सोच और विश्व लिपि की अवधारणा को एक जमीनी स्तर मिल जाए और अलगाववाद को एक करारा जवाब। इसके लिए सतह पर कार्य करने की आवश्यकता है। श्री अंसारी ने खासी भाषा की चर्चा करते हुए कहा कि मेघालय राज्य में चार पहाड़ी जनजातियों द्वारा बोली जाने वाली खासी भाषा पर मैंने अध्ययन किया तो पाया कि खासी भाषा के लिए सबसे उपयुक्त और प्रासंगिक लिपि सिर्फ देवनागरी ही है। खासी भाषा के अधिकतर शब्द या तो हिंदी से लिए गये हैं या अन्य भारतीय भाषाओं से। अंत में श्री अंसारी ने कहा कि देवनागरी लिपि को खासी भाषा के लिए अपना कर इस भाषा का कल्याम किया जा सकता है।
     आर्मी स्कूल की शिक्षिका डा. अनीता पण्डा ने अपने आलेख के माध्यम से कहा कि नागरी लिपि पूर्णतः वैज्ञानिक एवं पूर्ण संभावनाओं से युक्त लिपि है। हमारे विद्वजनों ने पूरे देश की एकता हेतु समस्त भारतीय भाषाओं और बोलियों को लेकर ही लिपि की कल्पना की थी। इसके लिए सबसे उपयुक्त नागरी लिपि है। इसकी वर्ण माला, उच्चारण आदि की व्यापकता के कारण सभी भारतीय भाषाओं को लिखा जा सकता है। डा. पण्डा ने बताया कि यदि सारी भारतीय भाषाओं को एक ही लिपि में लिखा जाए तो इससे कई लिपियों के बोझ से बचा जा सकता है। सभी भारतीय भाषाओं और बोलियों के लिए नागरी लिपि सर्वथा उपयुक्त है। सारी भारतीय भाषाओं और बोलियों की एक लिपि होना पूरे भारत को एकता के सूत्र में बाँधता है और आपस में सांस्कृतिक एकता को जोड़ता है। हमारी राजभाषा और लिपि ही हमारी अस्मिता है और पहचान भी।
    इस अवसर पर श्री तन्जीम अहमद और श्री जानमोहम्मद अंसारी ने नागरी लिपि पर अपनी अपनी कविताओं का पाठ भी किया। इस संगोष्ठी का सफल संचालन डा. अनीता पण्डा ने किया तथा इसका समापन स्थानीय संयोजक डा. अकेलाभाइ के धन्यवाद ज्ञापन के साथ हुआ। इस अवसर पर श्री रामबुझावन सिंह, श्रीमती आशा पुरकायस्थ, श्री सपन भोवाल, दीक्षा जैन, रुबी सिन्हा, गीता लिम्बू, राजकुमारी राय, शोभा गुप्ता आदि सहित  शिलांग के विभिन्न विद्यालयों के हिंदी शिक्षक एवं विद्यार्थी उपस्थित थे। {समाचार प्रस्तुति: डा. अकेलाभाइ, सचिव, पूर्वाेत्तर हिंदी अकादमी, पो. रिन्जा, शिलांग, मघालय/ मोबाइल: 09436117260}


प्रेम दत्त मिश्र की दो काव्य पुस्तकों का लोकार्पण

उत्तर प्रदेश के ब्रज क्षेत्र के विख्यात नगर कोसी कलां में प्रेम दत्त मिश्र की दो काव्य पुस्तकों का लोकार्पण हुआ। ये पुस्तकें हैं- ‘बृजराज श्री बलदेव शतक’ और दूसरी ‘मैथली शतक’। दोनों पुस्तके ब्रज भाषा में लिखी गई हैं और छंदोबद्ध रचना है।  
कार्यक्रम कि अध्यक्षता की श्री आर. एन. भारद्वाज ने और मुख्य अथिति डॉ. मनोहर लाल शर्मा एवं डॉ वेद व्यथित विशिष्ट अथिति थे। इस अवसर पर डॉ. मनोहर लाल शर्मा जी ने बलदेव जी के जीवन पर ऐतिहासिक प्रंसगों के माध्यम से
प्रकाश डाला। डॉ वेद व्यथित ने इस अवसर पर बलदेव जी को कृषक व कृषि प्रतिनिधि बताया तथा कहा कि उन के कंधे पर रखा हुआ हल इस बात का प्रतीक है और आज कृषि पर तथा किसान पर ही संकट के बदल छा रहे हैं।  
    इस अवसर पर सूरज प्रकाश बेनीवाल सतीश चन्द्र शर्मा डॉ सतीश शर्मा आदि ने काव्य पाठ भी किया। इस कार्यक्रम का  आयोजन में शिव शक्ति प्रकाशन के डॉ.करण लाल अग्रवाल ने किया। (समाचार सौजन्य : डॉ. वेद व्यथित) 



प्रो. मनु महरबान को राजेन्द्र व्यथित सम्मान
    
विगत दिनों भाषा विज्ञान विभाग पटियाला (पंजाब) में ज्ञानदीप साहित्य साधना मंच द्वारा उत्तर क्षेत्रीय सांस्कृतिक केन्द्र, हिन्दी साहित्य गंगा संस्था जलगांव के सौजन्य एक राष्ट्रीय कवि सम्मेलन का आयोजन किया गया गया। इस कवि सम्मेलन में पठानकोट के युवा साहित्यकार, उद्घोषक, रंगकर्मी प्रो.मनु महरबान को राजेन्द्र व्यथित सम्मान से सम्मानित किया गया। उन्हें यह सम्मान संस्था के अध्यक्ष सागर सूद, प्रतिष्ठित साहित्यकार मोहन मैत्रे, डॉ. प्रियेका सोनी ‘प्रीति’, श्री प्रवीण सूद तथा श्री भगवानदास गुप्ता द्वारा प्रदान किया गया। प्रो. मनु सुप्रसिद्ध शायर श्री राजेन्द नाथ्र रहबर के शिष्य एवं उभरते हुए साहित्यकार हैं। (समाचार सौजन्य: मनु महरबान, पठानकोट)



हिंदीतर प्रदेशों के छात्रों की ‘छात्र अध्ययन यात्रा’ 
     
 भारत सरकार के केन्द्रीय हिंदी निदेशालय की ‘छात्र अध्ययन यात्रा’ योजना के अंतर्गत हिंदीतर प्रदेशों के छात्र उत्तर भारत में अध्ययन के लिए कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय में पधारे। जहां का विश्व विद्यालय की प्रोफेसर पुष्पा रानी ने विश्व विद्यालय कि और से उत्साह पूर्ण स्वागत किया। इस अवसर पर कुरु.वि.वि. के छात्र कल्याण विभाग के अधिष्ठाता प्रोफेसर अनिल वशिष्ठ व कला संकाय के डीन प्रोफेसर आर.एस. भट्टी ने छात्रों को आशीर्वचन देते हुए सम्बोधन किया। हिंदीतर छात्रों के साथ पधारीं अनुसंधान अधिकारी अनुराधा सेंगर ने हिंदी के प्रचार और प्रसार की निदेशालय कि योजनाओं पर प्रकाश डाला। 
    इस कार्यक्रम के शैक्षिक सत्र में साहित्यकार डॉ. वेद व्यथित ने हिंदी भाषा व देवनागरी लिपि की विश्व स्तर पर स्वीकार्यता और लोकप्रियता तथा हिंदी भाषा का अन्य भारतीय भाषाओँ का  तुलनात्मक विश्लेषण करते हुए बताया कि भरतीय भाषों में कहीं  कोई विरोध नही हैं हिंदी भाषा व अन्य भारतीय भाषायें आपसी सहयोगात्मक संबंधों को ही व्यक्त करतीं हैं। डॉ. शशि धीमान ने इस अवसर पर हिंदी भाषा के महत्व पर विस्तार से प्रकाश डाला। इस अवसर विश्व विद्यालय के कई विभागों के डीन, प्रोफेसर, शोध छात्र व स्नातकोत्तर छात्र उत्साह पूर्वक उपस्थित रहे। प्रो. एच. एस. रंधावा प्रो. एम. एम.गोयल, डॉ आनंद दुबे व डॉ. जय प्रकाश गुप्त ने भी छात्रों का मार्गदर्शन किया।  
    दक्षिण भारत से पधारे छात्रों ने कार्यक्रम को रूचिपूर्वक सुना और अपनी प्रस्तुति भी दीं। पूजा डी यू, स्वेता एम राव वाणी कविराज, हिना कौसर स्वाति जाधव, सुधा कमले आदि छात्रों ने बहुत सी हिंदी की समस्याओं का समाधान पूछा। निदेशालय से साथ आये हितेश यादव व अंजू ने छात्रों की समुचित व्यवस्था उत्तरदायित्व पूर्ण रीती से अभिभावकवत् निभाई। अंतिम दिन इन छात्रों ने कुरुक्षेत्र के दर्शनीय स्थलों का अवलोकन किया। इस सम्पूर्ण कार्यक्रम को सफल बनाने में प्रोफेसर पुष्पा रानी परिश्रम पूर्वक जुटी रहीं। इस अवसर पर उत्तर भारत के छात्रों ने कहा कि इस तरह कि यात्रायें यहाँ के छात्रों के लिए भी आयोजित की जानी चाहिए। {समाचार सौजन्य :  डॉ. वेद व्यथित)} 



शिवशंकर यजुर्वेदी को साहित्य गौरव
    


           बरेली से प्रकाशित लघु पत्रिका ‘गीत प्रिया’ के सम्पादक एवं कवि श्री शिवशंकर यजुर्वेदी को सहारनपुर की संस्था ‘विभावरी’ द्वारा ‘विभावरी साहित्य-गौरव सम्मान’ सम्मानित किया गया। 
       श्री यजुर्वेदी को विभावरी द्धारा यह सम्मान उनके साहित्यिक योगदान के लिए पद्मश्री डॉ. रामनारायण बागले की स्मृति में दिया गया है। (समाचार सौजन्य: शिवशंकर यजुर्वेदी)



शब्द प्रवाह साहित्य सम्मान 2014 घोषित
     
उज्जैन की साहित्यिक संस्था ‘शब्द प्रवाह साहित्य मंच’ द्वारा आयोजित अखिल भारतीय स्तर पर वर्ष 2014 के लिए दिये जाने वाले सम्मान/पुरस्कारों की घोषणा कर दी गई है। हिन्दी कविता के लिए प्रथम पुरस्कार श्री थम्मनलाल वर्मा (पीलीभीत), द्वितीय पुरस्कार डॉ. तारा सिंह (मुम्बई), किशन स्वरूप (मेरठ), कृष्ण मोहन अम्भोज (पचोर), राजेन्द्र बहादुर सिंह राजन (रायबरेली) व डॉ. अशोक गुलशन (बहराइच) को संयुक्त रूप से तथा तृतीय पुरस्कार राहुल वर्मा (इन्दौर), शिवमंगल सिंह ‘मंगल’ (लखनऊ), घमंडी लाल अग्रवाल (गुड़गाँव), सुरजीतमान जलईया सिंह (आगरा) व डॉ. रमेश कटारिया पारस को संयुक्त रूप से दिये गए हैं। सर्वश्री करुण प्रकाश सक्सेना (विययपुर), सतीश चन्द्र शर्मा (मैनपुरी), नीलत मैदीरता (गुड़गाँव), डॉ.सारिका मुकेश (बैल्लूर), शोभा रानी तिवारी (इंदौर) व प्रोमिला भारद्वाज (मंडी) को सांत्वना पुरस्कार प्रदान किये गए हैं।
     हिन्दी लघुकथा के लिए प्रथम पुरस्कार कमलचन्द वर्मा (महू) को, द्वितीय पुरस्कार डॉ. नरेन्द्र नाथ लाहा (ग्वालियर), ज्योति जैन (इंदौर) व रंजना फतेपुरकर (इंदौर) को सुयुक्त रूप से, तृतीय पुरस्कार दिलीप भाटिया (रावतभाटा), नरेन्द्र कुमार गौड़ (गुड़गाँव) व गोपाल कृष्ण आकुल को संयुक्त रूप से तथा प्रोत्साहन पुरस्कार डॉ. सुषमा अय्यर (सूरत) को दिये गए हैं। व्यंग्य विधा के अन्तर्गत डॉ.हरीश कुमार सिंह (उज्जैन) को प्रथम, श्री देवेन्द्र कुमार मिश्रा को द्वितीय तथा कुश्लेन्द्र श्रीवास्तव को तृतीय पुरस्कार प्रदान किया गया है। (समाचार प्रस्तुति :  संदीप सृजन, संपादक: शब्द प्रवाह)


कुंवर प्रेमिल सम्मानित
     


        
         जबलपुर की साहित्यिक/सांस्कृतिक संस्था द्वारा साहित्यकार/संपादक कुंवर प्रेमिल को व्यंग्य शिल्पी हरिशंकर परसांई सम्मान से सम्मानित किया गया। 
       एक अन्य संस्था पाथेय साहित्य कला अकादमी जबलपुर द्वारा उन्हें स्व. गिरिजा देवी तिवारी सम्मान 2012 से सम्मानित किया है। सम्मान स्वरूप श्री प्रेमिल को रु.1100/- की नकद राशि, अंग वस्त्र व मोमेन्टो प्रदान किया गया। (समाचार सौजन्य :  कुंवर प्रेमिल)


मोह. मुईनुद्दीन अतहर सम्मानित
    



       विक्रमशिला हिन्दी विद्यापीठ भागलपुर द्वारा दिसम्बर 2013 में आयोजित समारोह में साहित्यकार एव ‘लघुकथा अभिव्यक्ति’ पत्रिका के सम्पादक श्री मोह. मुईनुद्दीन अतहर को ‘विद्यासागर’ की मानद उपाधि से सम्मानित किया गया है। 
       इसी समारोह में श्री अतहर की दो पुस्तकों- कविता संग्रह ‘काव्य सुमन’ तथा लघुकथा संग्रह ‘मुखौटों के पार’ का विमोचन भी संपन्न हुआ। ज्ञातव्य है कि श्री अतहर की अब तक चौदह पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं, जिनमें सात लघुकथा संग्रह हैं। (समाचार सौजन्य: मोह. मुईनुद्दीन अतहर)




स्वर्ण/रजत स्मृति सम्मान की घोषणा
    
हिन्दी भाषा साहित्य परिषद खगड़िया, बिहार के दो दिवसीय महाधिवेशन फणीश्वर नाथ रेणु स्मृति पर्व 8-9 मार्च 2014 में सम्मानित होने वाले साहित्यकारों की प्रविष्टियों पर चयन समिति के निर्णयानुसार राष्ट्रीय कोटे से ‘काव्य गंधा‘ के लिए त्रिलोक सिंह ठकुरेला (राजस्थान) को रामवली परवाना स्वर्ण स्मृति सम्मान, ‘इंडिया और भारत‘ के लिए देवेन्द्र कुमार मिश्रा (म0प्र0) को फणीश्वरनाथ रेणु रजत स्मृति सम्मान, ‘अपनी माटी‘ के लिए चन्द्रिका ठाकुर देशदीप (झारखंड) को जानकी बल्लभ शास्त्री रजत स्मृति सम्मान, ‘फिर भी कहना शेष रह गया‘ के लिए कृपाशंकर शर्मा अचूक (राजस्थान) को रामधारी सिंह दिनकर रजत स्मृति सम्मान, ‘काव्य चतुरंगिनी‘ के लिए अवधेश कुमार मिश्र (दिल्ली) को पोद्दार रामावतार अरूण रजत स्मृति सम्मान, ‘घरवाली का प्यार‘ के लिए अमित कुमार लाडी (पंजाब) को विधानचन्द्र राय रजत स्मृति सम्मान, बिहार कोटे से ‘क्रांति-गाथा‘ के लिए डॉ. जी.पी. शर्मा (सहरसा) को आरसी प्रसाद सिंह रजत स्मृति सम्मान, ‘वक्त की हथेली में‘ के लिए हातिम जावेद (मोतिहारी) को जितेन्द्र कुमार रजत स्मृति सम्मान, ‘घायल मन‘ के लिए अवधेश्वर प्रसाद सिंह (समस्तीपुर) को रामविलास रजत स्मृति सम्मान, ‘चमत्कार चमचई के‘ के लिए श्रीकान्त व्यास (पटना) को विश्वानंद रजत स्मृति सम्मान एवं ‘भावांजलि‘ के लिए हीरा प्रसाद हरेन्द्र (भागलपुर) को महताब अली रजत स्मृति सम्मान खगड़िया कोटे से ‘सूनी बरसात में‘ के लिए रमण सीही को दुष्यंत कुमार रजत स्मृति सम्मान, ‘विलसवा‘ के लिए डॉ.राजेन्द्र प्रसाद को नागार्जुन रजत स्मृति सम्मान, ‘अनुभव की सौगात‘ के लिए रामदेव पंडित राजा को महादेवी वर्मा रजत स्मृति सम्मान, ‘कौन मेरी पुकार सुनता है‘ के लिए कविता परवाना को अवध बिहारी गुप्ता रजत स्मृति सम्मान एवं ‘जिन्दगी के रंग है कई‘ के लिए कैलाश झा किंकर को सूर्यकान्त त्रिपाठी निराला रजत स्मृति सम्मान से सम्मानित किया जाएगा। {समाचार सौजन्य :  नंदेश निर्मल, सचिव, हिन्दी भाषा साहित्य परिषद्, खगड़िया}

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