आपका परिचय

गुरुवार, 22 नवंबर 2012

सामग्री एवं सम्पादकीय पृष्ठ : अक्टूबर 2012

अविराम  ब्लॉग संकलन :  वर्ष  : 2,   अंक  : 2,  अक्टूबर  2012 

प्रधान संपादिका :  मध्यमा गुप्ता
संपादक :  डॉ. उमेश महादोषी (मोबाइल : 09412842467)
संपादन परामर्श :  डॉ. सुरेश सपन  
ई मेल :  aviramsahityaki@gmail.com 

शुल्क, प्रकाशन आदि संबंधी जानकारी इसी पृष्ठ पर सबसे नीचे दी गयी है।

 ।।सामग्री।।


रेखांकन : बी. मोहन नेगी 
   कृपया सम्बंधित सामग्री के पृष्ठ पर जाने के लिए स्तम्भ के साथ कोष्ठक में दिए लिंक पर क्लिक करें।


अविराम विस्तारित : 

काव्य रचनाएँ  {कविता अनवरत:   इस अंक में सजीवन मयंक, शिवशंकर यजुर्वेदी, श्याम झँवर 'श्याम', विनीत जौहरी 'बदायूँनी', मनोहर चमोली 'मनु', प्रो सुधेश, रमेश नाचीज, मनोज अबोध, डॉ अशोक पाण्डेय 'गुलशन', ज़मीर दरवेश एवं पुष्प मेहरा की काव्य रचनाएँ।  

लघुकथाएँ   {कथा प्रवाह} :   इस अंक में श्री  सुभाष नीरव, श्री रामेश्वर काम्बोज हिमांशु,  डॉ. मुक्ता,  डॉ. शरद नारायण खरे,  श्री मनोहर शर्मा ‘माया’ एवं  श्री रोहित यादव की लघुकथाएं।

कहानी {कथा कहानी पिछले अंक तक अद्यतन

क्षणिकाएँ  {क्षणिकाएँ  इस अंक में अनिल जनविजय की क्षणिकाएँ।


हाइकु व सम्बंधित विधाएँ  {हाइकु व सम्बन्धित विधाएँ}  :  इस अंक में गिरीश पंकज, लक्ष्मीशंकर बाजपेयी, सुरेश यादव, के.एल. दिवान, डॉ. सुरेन्द्र वर्मा, रमेश चन्द्र श्रीवास्तव, प्रदीप गर्ग 'पराग', एन.एल. गोसांई, अमिता कोंडल, नीलू गुप्ता, ममता किरण, मीरा ठाकुर, कृष्ण कुमार यादव एवं मुमताज-टी.एच.खान के हाइकु।\

जनक व अन्य सम्बंधित छंद  {जनक व अन्य सम्बन्धित छन्द:   इस बार महावीर उत्तरांचली के दस जनक छंद।

हमारे सरोकार  (सरोकार) :   पिछले अंक तक अद्यतन

व्यंग्य रचनाएँ  {व्यंग्य वाण:   इस अंक में ओम प्रकाश मंजुल का व्यंग्यालेख ‘नेता! यह मधुमय देश हमारा’

संभावना  {सम्भावना:  इस अंक में संभावनाशील कवयित्री  पुष्प गुप्ता अपनी दो क्षणिकाओं के साथ।

स्मरण-संस्मरण  {स्मरण-संस्मरण पिछले अंक तक अद्यतन

अविराम विमर्श {अविराम विमर्श} :  पिछले अंक तक अद्यतन

किताबें   {किताबें} :  पिछले अंक तक अद्यतन

लघु पत्रिकाएँ   {लघु पत्रिकाएँ} :  पिछले अंक तक अद्यतन
हमारे युवा  {हमारे युवा} :   पिछले अंक तक अद्यतन

गतिविधियाँ   {गतिविधियाँ} : पिछले दिनों प्राप्त साहित्यिक गतिविधियों की सूचनाएं/समाचार

अविराम के अंक  {अविराम के अंक} :  पिछले अंक तक अद्यतन

अविराम साहित्यिकी के मुद्रित संस्करण के पाठक सदस्य (हमारे आजीवन पाठक सदस्य) :  अविराम साहित्यिकी के मुद्रित संस्करण के  20 नवम्बर 2012 तक बने आजीवन एवं वार्षिक पाठक सदस्यों की सूचना।

अविराम के रचनाकार  {अविराम के रचनाकार} : अविराम के पचपन  और रचनाकारों का परिचय।  

------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------


उमेश महादोषी 

मेरा पन्ना 


  • कई कारणों से ब्लॉग का यह अंक बिलम्ब से दे पाने के लिए क्षमा प्रार्थी हूँ। कई मित्रों ने फोन पर अंक के बारे में जानकारी ली, निसन्देह मित्रों को प्रतीक्षा करनी पड़ी है। अगला अंक समय से देने का प्रयास करूँगा।
  • अविराम साहित्यिकी का ‘अक्टूबर-दिसम्बर 2012’ मुद्रित अंक, जोकि वरिष्ठ लघुकथाकार एवं चिन्तक डॉ. बलराम अग्रवाल जी के संपादन में लघुकथा पर विशेषांक है, प्रकाशित हो चुका है। विशेषांक में 13 वरिष्ठ लघुकथाकारों की ‘लघुकथा यात्रा’, चार साक्षात्कारों के माध्यम से विमर्श और समकालीन लघुकथा के सृजन का प्रतिनिधित्व करती 97 समकालीन लघुकथाकारों की (प्रत्येक की एक-एक) प्रतिनिधि लघुकथाओं के साथ लघुकथा के पथ-प्रदर्शक दस वरिष्ठ साहित्यकारों, जो अब हमारे बीच नहीं हैं, की एक-एक लघुकथा को शामिल किया गया है। अंक के बारे में पाठकों की राय ही तय करेगी कि डॉ. बलराम अग्रवाल जी और अविराम का यह प्रयास कितना सार्थक रहा है। यदि पाठकों एवं लघुकथाकारों का हमें पर्याप्त सहयोग एवं सकारात्मक मार्गदर्शन प्राप्त होता है तो निःसन्देह भविष्य में लघुकथा पर कुछ अच्छी योजनाएँ लाने की हमें प्रेरणा मिलेगी।
  • विशेषांक के सामग्री वाले पृष्ठ की स्केन प्रति ब्लॉग के इसी पृष्ठ पर नीचे चस्पा की जा रही है, ताकि रचनाकार मित्र विशेषांक में अपनी उपस्थिति की जानकारी प्राप्त कर सकें।
  • विशेषांक के रचनाकारों एवं सदस्यों को अंक प्रेषित किया जा चुका है। यदि किसी रचनाकार या सदस्य को अंक की प्रति 30 नवम्बर 2012 तक प्राप्त नहीं होती है, तो दूसरी प्रति के लिए दस दिसम्बर 2012 तक संपर्क कर सकते हैं। इसके बाद मुद्रित प्रति भेजना संभव नहीं होगा। अंक के रचनाकारों व सदस्यों से इतर अन्य शुभचिंतकों व मित्रों को अंक की सद्भावना प्रति प्रेषित की जा रही है, सहयोग की अपेक्षा के साथ प्रेषित की जा रही है। अंक की पी.डी.एफ. प्रति ई मेल से निःशुल्क मंगाई जा सकती है।
  • मुद्रित प्रारूप में अगले यानी जनवरी-मार्च 2013 अंक से ‘बहस’ स्तम्भ को आरम्भ किया जा रहा है। अगले दो अंकों यानी जनवरी-मार्च 2013 अंक तथा अप्रैल-जून 2013 अंक के विषयों की जानकारी विस्तार से नीचे विज्ञापित की जा रही है। पाठकों के विचार जनवरी-मार्च 2013 अंक हेतु (‘साहित्य और भाषा की शुद्धता व संस्कार’ विषय पर) अधिकतम 31 दिसम्बर 2012 तक तथा अप्रैल-जून 2013 अंक हेतु (‘लघु पत्रिकाओं को आर्थिक सहयोग सार्थक या निरर्थक’ विषय पर) अधिकत 31 मार्च 2013 तक ई मेल से  aviramsahityaki@gmail.com  पर अथवा डाक द्वारा ‘‘अविराम साहित्यिकी, एफ-488/2, गली संख्या 11, राजेन्द्र नगर, रुड़की-247667, जिला हरिद्वार (उत्तराखण्ड)’’ के पते पर आमन्त्रित हैं। ‘बहस’ में आपकी सहभागिता भविष्य में कई ज्वलन्त साहित्यिक समस्याओं पर सामान्य दृष्टिकोंण बनाने में उपयोगी सिद्ध होगी। आप ऐसे विषयों का सुझाव भी हमें भेज सकते हैं, जिन पर आप पाठकों को बहस करते देखना चाहते हैं।



------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------
              ‘बहस’ हेतु आमंत्रण

1. जनवरी-मार्च 2013 अंक हेतु   (31 दिसम्बर 2012 तक)


 ‘‘साहित्य और भाषा की शुद्धता व संस्कार’’
मुद्रित प्रारूप में हम एक नये स्तम्भ ‘बहस’ का आरम्भ कर रहे हैं। इसमें एक दिये गये विषय पर अपने विचारों के साथ पाठकों की सीधी सहभागिता होगी। जनवरी-मार्च 2013 अंक के लिए विषय है- ‘‘साहित्य और भाषा की शुद्धता व संस्कार’’। पाठकों से उनके यथासंक्षिप्त विचार निम्न प्रश्नों के परिप्रेक्ष में 31 दिसम्बर 2012 तक आमन्त्रित हैं। पाठक अपने विचार संक्षिप्त आलेख के रूप में भी भेज सकते हैं। मुद्रित अंक में स्थान की उपलब्धता के अनुसार चुने हुए विचार प्रकाशित होंगे। ब्लॉग प्रारूप में प्राप्त सभी विचार प्रकाशित किये जायेंगे।
1. साहित्य में सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण क्या है, भाषा की शुद्धता और संस्कार या सम्प्रेषण?
2. क्या एक लेखक के लिए भाषाई स्तर पर समृद्ध एवं चैतन्य होना जरूरी है?
3. क्या संस्कारित भाषा साहित्य की जरूरी शर्त है? यदि हाँ तो किस स्तर तक? 
4. हिन्दी में जानबूझकर अन्य भाषाओं के शब्दों का प्रयोग करना क्या उचित है? इसी सन्दर्भ में रचनाकारों के द्वारा कई शब्दों को अपनी सुविधा या रचना की मांग के नाम पर परिवर्तित करके उपयोग करने की प्रवृत्ति पर आप क्या कहना चाहेंगे?
5. सामान्यतः बोलचाल की हिन्दी भाषा में दूसरी भाषाओं, यथा उर्दू, अंग्रेजी आदि के शब्दों का मिश्रण होता है। क्या साहित्य लेखन में इसे जस का तस उपयोग करना ठीक है? 
6. भाषाई उत्तरदायित्व को आप कैसे परिभाषित करेंगे? क्या लेखक को भाषाई उत्तरदायित्वों की समझ अनिवार्यतः होनी चाहिए?
7.भाषा के परिष्कार को लेखक का अनिवार्य उत्तरदायित्व मानने एवं उसके निर्वाह से साहित्य और आम-जन के रिश्तों पर क्या प्रभाव पड़ता है? 
8. भाषाई स्तर पर यदि कोई रचनाकार कमजोर है तथा जैसी  भाषा वह लिखना-पढ़ना जानता है, उसी में सृजन करता है। इसे किस दृष्टि से देखा जाए?
9. यदि लेखक की बात पाठक की समझ में आ रही है/सम्प्रेषित हो रही है लेकिन उसकी भाषा व्याकरण की दृष्टि से दोषपूर्ण है और अपनी भाषाई अक्षमताओं के कारण अपनी रचनाओं में भाषा सम्बन्धी दोषों को चाहते हुए भी दूर न कर पाए तो क्या उसके लेखन को हतोत्साहित किया जाना चाहिए? और क्या ऐसा करने पर बहुत से अच्छे विचारों और उसकी अभिव्यक्ति से साहित्य व पाठकों को वंचित करना उचित होगा?
10. एक सामान्य पाठक के रूप में आपको कैसा साहित्य प्रभावित करता है- आम बोलचाल की भाषा में लिखा गया या व्याकरण की दृष्टि से शुद्ध और संस्कारित भाषा में लिखा गया?
11. यदि आप एक रचनाकार भी हैं तो साहित्य और भाषा के सन्दर्भ में एक पाठक के रूप में आप अपने को आम व्यक्ति के करीब पाते हैं या उससे कुछ अलग? 

2. अप्रैल-जून  2013 अंक हेतु   (31 मार्च  2013 तक )


लघु पत्रिकाओं को आर्थिक सहयोग सार्थक या निरर्थक?

लघुपत्रिकाओं को लेखकों के आर्थिक सहयोग पर आप क्या सोचते हैं? कई की बातें उठती हैं, मसलन लघुपत्रिकाओं का प्रकाशन अनिश्चितता के घेरे में रहता है इसलिए उन्हें दिया गया आर्थिक सहयोग कब डूब जाये, कुछ पता नहीं; लेखक लेखकीय सहयोग भी करें फिर आर्थिक सहयोग भी, यह लेखकों के शोषण जैसा है; लघुपत्रिकाओं के प्रकाशक अपने कारणों से उन्हें प्रकाशित करते हैं तो उनके लिए संसाधन भी स्वयं जुटायें आदि। ये बातें कितनी गम्भीर हैं, कितनी सतही? क्या लघुपत्रिकाओं का होना गैरजरूरी है? क्या ‘लघुपत्रिकायें क्यों’ का प्रश्न ‘लेखन क्यों’ के जैसा ही नहीं है? नियमित लघुपत्रिकाओं के प्रकाशक भी लेखक ही होते हैं, क्या वे लेखन के साथ लघुपत्रिकाओं के रूप में एक अतिरिक्त जिम्मेवारी का निर्वहन नहीं करते हैं? तब क्या अन्य लेखकों से आर्थिक सहयोग की अपेक्षा उसी अतिरिक्त जिम्मेवारी में हाथ बंटाने की अपेक्षा जैसी नहीं है? बहुत सारे प्रश्न हो सकते हैं। लेखन के सरोकारों के सापेक्ष लघुपत्रिकाओं के सरोकारों पर भी दृष्टि डालिए और इस बहस में शामिल होकर एक जरूरी मुद्दे को दिशा दीजिए। अपने विचार अविराम को 31 मार्च 2013 तक भेज सकते हैं।


------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------

अविराम के दोनों प्रारूपों से सम्बंधित सूचना 

  • जो चित्रकार एवं फोटोग्राफी करने वाले मित्र अविराम में प्रकाशनार्थ अपने रेखांकन एवं छाया चित्र भेजना चाहते हैं, उनका स्वागत है। साथ में अपना परिचय एवं फोटो भी भेजें।
  • जिन रचनाकार मित्रों की कोई रचना अविराम के मुद्रित या ब्लॉग संस्करण में प्रकाशित हुई है और उन्होंने अपना फोटो व परिचय अभी तक हमें उपलब्ध नहीं कराया है, उनसे अनुरोध हैं की शीघ्रातिशीघ्र अपना  फोटो व परिचय  भेजने का कष्ट करें। भविष्य में पहली बार रचना भेजते समय फोटो  व अद्यतन परिचय अवश्य भेजें। 
  • जो रचना अविराम में प्रकाशनार्थ एक बार भेज दी गयी है,  उसे कृपया दुबारा न भेजें।
  • प्रत्येक रचना के साथ अपना नाम एवं पता अवश्य लिखें। ऐसी रचनाएं, जिनके साथ रचनाकार का नाम व पता नहीं लिखा होगा,  हम भविष्य में उपयोग नहीं कर पायेंगे और उन्हें नष्ट कर देंगें। 
  • किसी भी प्रकाशित सामग्री पर हम किसी भी रूप में पारिश्रमिक देने की स्थिति में नहीं हैं। अत: पारिश्रमिक के इच्छुक मित्र क्षमा करें।
  •  अविराम साहित्यिकी के  सामान्य अंकों हेतु लघुकथा विषयक सामग्री हमें सीधे रुड़की के पते पर भेजना कृपया जारी रखें।
  •     अविराम के नियमित स्तम्भों के लिए क्षणिकाएं एवं जनक छंद की स्तरीय रचनाएं बहुत कम मिल पा रही हैं। क्षणिका पर हमारी एक और योजना भी विचाराघीन है। रचनाकारों से अपील है कि स्तरीय क्षणिकाएं अधिकाधिक संख्या में भेजकर सहयोग करें। ग़ज़ल विधा में हमारे पास फ़िलहाल काफी रचनाएँ विचाराधीन हैं, अत: आगामी छ:माह तक गज़लें न भेजना ही उचित होगा। 
  • प्राप्त पुस्तकों के प्रकाशन सम्बन्धी सूचना सहयोग की भावना से मुद्रित अंक में प्रकाशित की जाती है। कुछ प्राप्त पुस्तकों की चर्चा हम ब्लॉग प्रारूप पर पुस्तक से कुछ रचनाएं पाठकों के समक्ष रखकर भी करने का प्रयास करते हैं। ब्लॉग एवं मुद्रित प्रारूप में यद्यपि हम अधिकाधिक पुस्तकों की समीक्षा/संक्षिप्त समीक्षा/पुस्तक परिचय भी देने का प्रयास करते हैं, तदापि यह कार्य पूरी तरह स्थान की उपलब्धता एवं हमारी सुविधा पर निर्भर करता है। इस संबन्ध में किसी मित्र से हमारा कोई आश्वासन नहीं है।
  • कृपया  अविराम साहित्यिकी का शुल्क ‘अविराम साहित्यिकी’ के नाम ही धनादेश, चेक  या मांग ड्राफ्ट द्वारा भेजें, व्यक्तिगत नाम में नहीं। हमारे बार-बार अनुरोध के बावजूद कुछ मित्र अविराम साहित्यिकी का शुल्क ‘अविराम साहित्यिकी’ के नाम भेजने की बजाय उमेश महादोषी या प्रधान सम्पादिका के पक्ष में इस तरह से चैक बनाकर भेज देते हैं, कि उन चैकों का भुगतान हमारे लिए प्राप्त करना सम्भव नहीं होता है। इस तरह के चैकों को वापस करना भी हमारे लिए बेहद खर्चीला होता है, अतः हम ऐसे चैक वापस कर पाने में असमर्थ हैं।  उन्हें अपने स्तर पर नष्ट कर देने के अलावा हमारे पास कोई विकल्प नहीं है। 
  • अविराम साहित्यिकी का वर्तमान सदस्यता शुल्क पुराने 52 पृष्ठीय प्रारूप पर आधारित है। चूँकि सामान्य मुद्रित अंकों में जुलाई-सितम्बर 2012 अंक से पृष्ठों की संख्या बढ़ाकर 72+04=76 कर दी गयी है। बढ़े हुए पृष्ठों के दृष्टिगत वार्षिक एवं आजीवन सदस्यता शुल्क में कुछ माह बाद बृद्धि की जायेगी, अत: जो मित्र आजीवन सदस्य बनना चाहते हैं, फ़िलहाल पुराना शुल्क (रुपये 750/-) ही भेजकर आजीवन  सदस्य बन सकते हैं। 
  •     यदि वास्तव में आप इस लघु पत्रिका की आर्थिक सहायता करना चाहते हैं तो किसी भी माध्यम से राशि केवल ‘अविराम साहित्यिकी’ के ही पक्ष में एफ-488/2, गली संख्या-11, राजेन्द्रनगर, रुड़की-247667, जिला हरिद्वार, उत्तराखंड के पते पर भेजें और जहां तक सम्भव हो एकमुश्त रु.750/- की राशि भेजकर आजीवन सदस्यता लेने को प्राथमिकता दें। आपकी आजीवन सदस्यता से प्राप्त राशि पत्रिका के दीर्घकालीन प्रकाशन एवं भविष्य में पृष्ठ संख्या बढ़ाने की दृष्टि से एक स्थाई निधि की स्थापना हेतु निवेश की जायेगी। कम से कम अगले दो-तीन वर्ष तक इस निधि से कोई भी राशि पत्रिका के प्रकाशन-व्यय सहित किसी भी मद पर व्यय न करने का प्रयास किया जायेगा।  

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें