आपका परिचय

शुक्रवार, 21 अक्तूबर 2011

दो और किताबें

{अविराम के ब्लाग के इस अंक में दो पुस्तकों की समीक्षा  रख  रहे हैं।  कृपया समीक्षा भेजने के साथ समीक्षित पुस्तक की एक प्रति हमारे अवलोकनार्थ (डा. उमेश महादोषी, एफ-488/2, राजेन्द्र नगर, रुड़की-247667, जिला- हरिद्वार, उत्तराखण्ड के पते पर) अवश्य भेजें।}

एन. डी. सोनी 

एक बुन्देली हाइकु संग्रह

साहित्य में काव्य हमेशा से आकर्षण का केन्द्र रहा है। गद्य साहित्य जहाँ किसी बात का विस्तृत विवेचन करता है, वहीं कविता संक्षेप में/सारगर्भित रूप में बात को सौन्दर्यपूर्ण तरीके से प्रस्तुत करती है। काव्य साहित्य के विकास में हिन्दी में अनेकों प्रकार के छन्दों का प्रयोग हुआ है। कई छन्द क्लिष्ट और गूढ़ होते हैं, जिन्हें सुनना-समझना काफी मुश्किल होता है। इसलिए आम आदमी सरल और आम बोलचाल के छन्दों को अधिक पसन्द करता है। पाठकों की इसी प्रवृत्ति को समझते हुए श्री राजीव नामदेव ने लघुतम छन्द हाइकु में कविता करने का प्रयोग शुरू किया। इस जापानी छन्द में पहले उन्होंने खड़ी बोली में ‘रजनीगन्धा’ हाइकु संग्रह सन् 2008 में प्रकाशित किया और लोगों को पसन्द आने पर उन्होंने बुन्देली भाषा में पहला हाइकु संग्रह ‘नौनी लगे बुन्देली’ प्रस्तुत किया है।
      ‘नौनी लगे बुन्देली’ में सौ हाइकु बन्देली में लिखे गये हैं। जिसमें मानव जीवन के विभिन्न विषयों पर उन्होंने कलम चलाई है। संग्रह को पढ़ने से ऐसा नहीं लगता कि यह उनका पहला प्रयोग होगा। बुन्देली में ऐसा विशिष्ट संग्रह लिखकर उन्होंने जहाँ बुन्देली कवियों में अपना विशिष्ट स्थान बनाया है, वहीं लोगों को एक नई राह भी सुझाई है। यद्यपि बुन्देली में एक छोटा छन्द ख्याल है, जो गायक कलाकारों द्वारा प्रयोग में लाया जाता है। बुन्देली का हाइकु संग्रह साहित्यकारों और सामान्य पाठकों के हाथों में पहुँचने के बाद प्रतिक्रियाएँ सामने आयेंगी। मुझे लगता है कि संग्रह को पढ़कर अन्य कवि भी हाइकु लेखन के लिए प्रेरित हो सकते हैं।
    इस संग्रह की शुरुआत कवि ने वंदना खण्ड द्वारा ईश प्रार्थना से की है। शुद्ध बुन्देली ढंग से हाइकु में श्री गणेश जी को कवि प्रणाम करता है- ‘गनेश जू खौं/दण्डवत प्रनाम/हों पूरे काम’। यह बहुत सीधी और सरल अभिव्यक्ति है। इसी प्रकार चिन्तन खण्ड में आज के समाज के लिए सबसे आवश्यक बात को कवि कितने सहज ढंग से कह देता है, अवलोकन करें- ‘पुरा परोस/हिलमिल रइयौ/गम्म खइयो’।
   मानव जीवन के मधुरतम रस श्रृंगार पर कवि ने अपनी कलम का जादू बिखेरा है। प्रकृति के श्रृंगार की छटा देखें- ‘बसंत आऔ/मउआ गदराऔ/आम बौराऔ’। इसी बसंत से प्रभावित प्रेमी अपने हृदय का हाल कैसे प्रकट करता है, यह इस हाइकु में बहुत स्पष्ट है- ‘कछु बचो न/बे अखियाँ मिलाके/सब लै गईं’।
    श्री राजीव जी ने जहाँ  बुन्देलखण्ड के फलों, फसलों और खेतों का सजीव चित्रण कर उनकी विशेषताओं को उजागर किया है, वहीं देश-प्रेम और रालनीति की पोलों पर कलम चलाना नहीं भूले। नेताओं के चरित्र की विशेषताओं पर दो हाइकु दृष्टव्य हैं- ‘कोरो पाखण्ड/नेतन कौ चरित्र/गिरदौसा सौ’ तथा ‘बखत परै/गदबद हैं देत/आज के नेता’।
    हाइकु संग्रह में नामदेव जी ने एक ‘अन्य’ ख्ण्ड रखा है, जिसमें जीवन के अनेक पहलुओं पर हाइकु लिखे हैं जिनकी झलकियाँ अनूठी हैं। गरीबी और अमीरी की दो विपरीत झलकियाँ देखें- ‘कैसे जी रये/चून तक नइयाँ/आँसू पी रये‘ और ‘जब मिलत/खाबें को परें-परें/काय खौं करें’।
   प्रस्तुत पुस्तक में ऐसे बहुत से हाइकु हैं जिन्हें पढ़कर मन प्रशन्न हो जाता है और खड़ी बोली से भी नौंनी बुन्देली लगने लगती है। संग्रह पढ़कर ही इसका आनन्द उठाया जा सकता है। कविता के इतने छोटे छन्द में बुन्देली कहावतों का सफल प्रयोग करके कवि ने अपने काव्य-कौशल का अच्छा परिचय दिया है। इस संक्षिप्त विवेचना में, मैं अधिक उदाहरण देना उचित नहीं समझता। हाँ, इतना अवश्य कहूँगा, कुछ ऐसे हाइकु हैं जिनमें यदि बुन्देली के शब्दों को परिवर्तित कर दिया जाता तो उसकी सुन्दरता में वांछनीय वृद्धि हो जाती। आशा है भविष्य में लेखन में कवि के मन में उद्वेलित भावनाओं का प्रस्फुटन निश्चय ही अधिक प्रभावपूर्ण होगा, जिसकी क्षमता नामदेव जी में है। जैसे-जैसे उनकी बुन्देली शब्द सम्पदा में वृद्धि होगी, उनके हाइकु लेखन में उत्तरोत्तर निखार आयेगा।

नौंनी लगे बुन्देली ( बुन्देली हाइकु संग्रह ) :  राजीव नामदेव ‘राना लिधौरी’। प्रकाशक : म.प्र. लेखक संघ, टीकमगढ़ (म.प्र.),। पृष्ठ :  88, मूल्य : 80 रुपये ; संस्करण :  2010।
  • महामंत्री, श्री वीरेन्द्र केशव साहित्य परिषद, टीकमगढ़ (म.प्र.)

 डॉ. उमेश महादोषी
सपाटबयानी में जीवन की छटपटाहट

‘क़तरा क़तरा जिन्दगी’ गांगेय कमल जी का पहला कविता संग्रह है। इसमें उनकी 33 कविताएं एवं 105 हाइकु संग्रहीत हैं। सपाटबयानी शैली में लिखी इन कविताओं में कवि मन की भावुकता तो है ही, मानवीय संवेदना और सरोकारों को भी देखा जा सकता है। परछाइयाँ (1), परछाइयाँ (2), दर्द, माँ, सुख, जिन्दगी आदि कविताओं में कवि की भावुकता में डूबी जीवन की धड़कनों को सुना जा सकता है। मजबूरी (1), मजबूरी (2), सर्दी की रात, उम्र का सूत, बरसात शीर्षक कविताओं में मानवीय संवेदना और सरोकारों का अहसास भी है। ‘वीरान खण्डहर’ की चुप्पियों में खोई उसके अतीत की विरासत को कमल जी का चित्रकार कुरेदता है तो उससे आने वाली आवाजों को उनके अन्दर का भावुक कवि पूरी सिद्दत के साथ सुनता है। प्यास, धुआँ, शून्य  जैसी कविताओं में कवि जिन्दगी के फलसफे को समझने की कोशिश करता दिखता है।
   जहाँ तक हाइकु का प्रश्न है, लघुकाय रचना होने एवं भावार्थ में व्यापकता की अपेक्षा के कारण सपाटबयानी में हाइकु का प्रभाव आ नहीं पाता है। फिर भी कमल जी ने जहाँ कहीं प्रकृति-सानिध्य के चित्र बनाने एवं बिम्बों के माध्यम से अपनी बात कहने की कोशिश की है, वहाँ वह सफल रहे हैं। कुछ उदाहरण रखना चाहूँगा-
ऋतु बसंत/मादकता के संग/शीत का अन्त
ध्यान से सुन/बहती नदिया से/निकली धुन
होठों पे हाला/बरसती आँखें/दिल में ज्वाला
धुंध सी छाती /जब राह कोई भी/मिल न पाती
    संग्रह के 15-20 हाइकु सफल कहे जा सकते हैं।
   इस संग्रह की रचनाओं का दूसरा पक्ष यह है कि गांगेय जी के मन में विचार जिस रूप में और जिस तीव्रता से आते हैं, लगता है वह उन्हें उसी रूप में और उतनी ही तीव्रता के साथ अभिव्यक्त भी कर देते हैं। इसलिए उनकी इन रचनाओं को उनकी स्वाभाविक एवं सरल अभिव्यक्ति भले मन लिया जाये, पर इससे कविता के शिल्प और तकनीकी पक्ष की उपेक्षा जरूर हुई है। रचना की सहजता, सरलता, स्वाभाविकता के साथ उसके शिल्प-सौन्दर्य की भी भूमिका होती है कविता के प्रभाव और सम्प्रेषण में। मुझे लगता है गांगेय कमल जी को कविता के शिल्प पर काफी मेहनत करने की जरूरत है। उनके अन्दर वैचारिक स्तर पर काफी कुछ है, जिसे वह कविता के पाठकों को दे सकते हैं, पर उसे प्रभावशाली ढंग से सम्पेषित करने के लिए शिल्प-कौशल को भी विकसित करना चाहिए। पर इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता कि सपाटबयानी में भी उन्होंने जीवन की छटपटाहट को अभिव्यक्ति दी है।

क़तरा क़तरा जिन्दगी :  कविता संग्रह। कवि :  गांगेय कमल। प्रकाशक :  हिन्दी साहित्य साधना प्रकाशन, ज्ञानोदय अकादमी, निर्मला छावनी, हरिद्वार (उत्तराख्ण्ड)। पृष्ठ : ५० + १४+४, मूल्य : 100/-। संस्करण : जनवरी २०११
  • ऍफ़-४८८/२, गली न. ११, राजेंद्र नगर, रुड़की-२४७६६७, जिला- हरिद्वार (उत्तराखंड)

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